कवियों की सूची
सैकड़ों कवियों की चयनित कविताएँ
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सी. नारायण रेड्डी
तेलुगु के समादृत कवि-लेखक। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित।
सच्चिदानंद राउतराय
ओड़िया के समादृत कवि, उपन्यासकार और कथाकार। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित।
संत कवि। सरल और सहज भाषा। कविता में दैनिक जीवनानुभवों और उदाहरणों से अपनी बात पुष्ट करने के लिए स्मरणीय।
चरनदास की शिष्या। प्रगाढ़ गुरुभक्ति, संसार से पूर्ण वैराग्य, नाम जप और सगुण-निर्गुण ब्रह्म में अभेद भाव-पदों की मुख्य विषय-वस्तु।
समीर रायचौधुरी
'भूखी पीढ़ी' और अधुनांतिक बांग्ला कविता से संबद्ध प्रमुख कवि-लेखक-चिंतक।
सैम्युअल मथाई
शिक्षाविद, आलोचक, कला-समीक्षक, अनुवादक और रेडियो वार्ताकार।
संगीता गुंदेचा
सुपरिचित कवयित्री-कथाकार और अनुवादक। संस्कृत भाषा, नृत्य और रंगमंच में भी सक्रियता।
संजय भट्टाचार्य
बांग्ला कवि-समालोचक। ‘पुर्बाशा’ पत्रिका के संस्थापक-संपादक।
संजय चतुर्वेदी
नवें दशक के महत्त्वपूर्ण कवि। अपने काव्य-वैविध्य के लिए उल्लेखनीय। भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित।
संजय कुंदन
नवें दशक में सामने आए हिंदी के महत्त्वपूर्ण कवि-कथाकार और पत्रकार। भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित।
संजीव मिश्र
‘मिले बस इतना ही’ शीर्षक कविता-संग्रह के कवि। कम आयु में दिवंगत।
संत बाबालाल
भक्तिकालीन निर्गुण संत। 'असरारे मार्फत' और 'नादिरुन्निकात' कृतियों के रचनाकार।
बावरी साहिबा के प्रधान शिष्य और प्रसिद्ध संत यारी साहब के गुरु। जन्म-मृत्यु तिथियाँ अनिश्चित।
संत दरिया (मारवाड़ वाले)
भक्तिकाल के निर्गुण संतकवि। वाणियों में प्रेम, विरह, और ब्रह्म की साधना के गहरे अनुभव। जनश्रुतियों में संत दादू के अवतार।
संत जगजीवन
रीतिकाल के निर्गुण संतकवि। संत बुल्ला के शिष्य और 'सतनामी संप्रदाय' के संस्थापक।
संत यारी के शिष्य। आध्यात्मिक अनुभव को सरल भाषा में प्रस्तुत करने वाले अलक्षित संत-कवि।
संत लालदास
भक्तिकाल। संत गद्दन चिश्ती के शिष्य। लालदासी संप्रदाय के प्रवर्तक। मेवात क्षेत्र में धार्मिक पुनर्जागरण के पुरोधा।
संत रामचरण
श्री रामस्नेही संप्रदाय के प्रवर्तक। वाणी में प्रखर तेज। महती साधना, अनुभूति की स्वच्छता और भावों की सहज गरिमा के संत कवि।
संत सालिगराम
'राधास्वामी सत्संग' के द्वितीय गुरु। स्पष्ट और सरल भाषा में अनुभवजन्य ज्ञान को अपनी वाणियों में प्रस्तुत किया।
संत शिवदयाल सिंह
'राधास्वामी सत्संग' के प्रवर्तक। सरस और हृदयग्राह्य वाणियों के लिए प्रसिद्ध।
संत शिवनारायण
शिवनारायणी संप्रदाय के प्रवर्तक। वाणियों में स्वावलंबन और स्वानुभूति पर विशेष ज़ोर। भोजपुरी भाषा का सरस प्रयोग।