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संत तुकाराम

1608

महाराष्ट्र के संत कवि। भक्ति के अभंग पदों के लिए प्रसिद्ध।

महाराष्ट्र के संत कवि। भक्ति के अभंग पदों के लिए प्रसिद्ध।

संत तुकाराम के दोहे

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लोभी के चित धन बैठे, कामिनि के चित काम।

माता के चित पूत बैठे, तुका के मन राम॥

तुका बड़ो मानूं, जिस पास बहुत दाम।

बलिहारी उस मुख की, जिस ते निकसे राम॥

तुका मार्या पेट का, और जाने कोय।

जपता कछु राम नाम, हरि भगत की सोय॥

तुका कुटुंब छोरे रे लड़के, जीरो सिर मुंडाय।

जब ते इच्छा नहिं मुई, तब तूँ किया काय॥

राम-राम कह रे मन, और सुं नहिं काज।

बहुत उतारे पार आगे, राखि तुका की लाज॥

तुका दास तिनका रे, राम भजन नित आस।

क्या बिचारे पंडित करो रे, हात पसारे आस॥

राम कहे सो मुख भला रे, बिन राम से बीख।

आय जानू रमते बेरा, जब काल लगावे सीख॥

कहे तुका जग भुला रे, कह्या मानत कोय।

हात परे जब काल के, मारत फोरत डोय॥

कहे तुका तु सबदा बेचूं, लेवे केतन हार।

मीठा साधु संत जन रे, मूरख के सिर मार॥

चित्त मिले तो सब मिले, नहिं तो फुकट संग।

पानी पत्थर एक ही ठोर, कोर भीजे अंग॥

फल पाया तो सुख भया, किन्ह सूं करे विवाद।

बान देखे मिरगा, चित्त मिलाया नाद॥

तुका और मिठाई क्या करूँ, पाले विकार पिंड।

राम कहावे सो भली रूखी, माखन खीर खांड॥

ब्रीद मेरे साइयां को, तुका चलावे पास।

सुरा सोहि लरे हम से, छोरे तन की आस॥

संतन पन्हैयाँ ले खड़ा, रहूँ ठाकुरद्वार।

चलता पाछे हूँ फिरो, रज उड़त लेउं सिर॥

भीस्त पावे मालथी, पढ़िया लोक रिझाय।

नीचा जेथे कमतरीन, सोही सो फल खाय॥

तुका प्रीत राम सूं, तैसी मीठी राख।

पतंग जाय दीप पररे, करे तन की ख़ाक॥

राम कहे सो मुख भला रे, खाए खीर खांड।

हरि बिन मुख मों धूल परी, क्या जनी उस रांड॥

कहे तुका भला भया, हुआ संतन का दास।

क्या जानूं केते मरता, मिटती मन की आस॥

तुका बस्तर बिचारा क्या करे, अतंर भगवान होय।

भीतर मैला कब मिटे रे मन, मरे ऊपर धोय॥

चित सुंचित जब मिले, तब तन थंडा होय।

तुका मिलना जिन्ह सूं, ऐसा बिरला कोय॥

तुका संगत तिन से कहिए, जिन से सुख दुनाए।

दुर्जन तेरा मूं काला, थीतो प्रेम घटाए॥

तुका मिलना तो भला, मन सूं मन मिल जाय।

ऊपर-ऊपर माटी घासनी, उनको को बराय॥

तुका राम सूं चित बाँध राखूं, तैसा आपनी हात।

धेनु बछरा छोर जावे, प्रेम छूटे सात॥

तुका राम बहु मीठा रे, भर राखूं शरीर।

तन की करुं नाब री, उतारूँ पैल तीर॥

तुकादास राम का, मन में एकहिं भाव।

तो पालटू आवे, येही तन जाय॥

तुका सुरा बहुत कहावे, लड़न बिरला कोय।

एक पावे ऊँच पदवी, एक खौसा जोय॥

तुका इच्छा मिटी नहिं तो, काहा करे जटा ख़ाक।

मथीया गोलाडार दिया तो, नहिं मिले फेर ताक॥

काफर सोही आप बुझे, आला दुनिया भर।

कहे तुका सुनो रे भाई, हिरदा जिन्ह का कठोर॥

तुका सुरा नहिं शबद का, जहाँ कमाई होय।

चोट सहे घन की रे, हिरा नीबरे तोय॥

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