संत तुकाराम के दोहे
लोभी के चित धन बैठे, कामिनि के चित काम।
माता के चित पूत बैठे, तुका के मन राम॥
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तुका बड़ो न मानूं, जिस पास बहुत दाम।
बलिहारी उस मुख की, जिस ते निकसे राम॥
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तुका मार्या पेट का, और न जाने कोय।
जपता कछु राम नाम, हरि भगत की सोय॥
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तुका कुटुंब छोरे रे लड़के, जीरो सिर मुंडाय।
जब ते इच्छा नहिं मुई, तब तूँ किया काय॥
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राम-राम कह रे मन, और सुं नहिं काज।
बहुत उतारे पार आगे, राखि तुका की लाज॥
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तुका दास तिनका रे, राम भजन नित आस।
क्या बिचारे पंडित करो रे, हात पसारे आस॥
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राम कहे सो मुख भला रे, बिन राम से बीख।
आय न जानू रमते बेरा, जब काल लगावे सीख॥
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कहे तुका जग भुला रे, कह्या न मानत कोय।
हात परे जब काल के, मारत फोरत डोय॥
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कहे तुका तु सबदा बेचूं, लेवे केतन हार।
मीठा साधु संत जन रे, मूरख के सिर मार॥
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चित्त मिले तो सब मिले, नहिं तो फुकट संग।
पानी पत्थर एक ही ठोर, कोर न भीजे अंग॥
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फल पाया तो सुख भया, किन्ह सूं न करे विवाद।
बान न देखे मिरगा, चित्त मिलाया नाद॥
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तुका और मिठाई क्या करूँ, पाले विकार पिंड।
राम कहावे सो भली रूखी, माखन खीर खांड॥
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ब्रीद मेरे साइयां को, तुका चलावे पास।
सुरा सोहि लरे हम से, छोरे तन की आस॥
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संतन पन्हैयाँ ले खड़ा, रहूँ ठाकुरद्वार।
चलता पाछे हूँ फिरो, रज उड़त लेउं सिर॥
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भीस्त न पावे मालथी, पढ़िया लोक रिझाय।
नीचा जेथे कमतरीन, सोही सो फल खाय॥
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तुका प्रीत राम सूं, तैसी मीठी राख।
पतंग जाय दीप पररे, करे तन की ख़ाक॥
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राम कहे सो मुख भला रे, खाए खीर खांड।
हरि बिन मुख मों धूल परी, क्या जनी उस रांड॥
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कहे तुका भला भया, हुआ संतन का दास।
क्या जानूं केते मरता, न मिटती मन की आस॥
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तुका बस्तर बिचारा क्या करे, अतंर भगवान होय।
भीतर मैला कब मिटे रे मन, मरे ऊपर धोय॥
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चित सुंचित जब मिले, तब तन थंडा होय।
तुका मिलना जिन्ह सूं, ऐसा बिरला कोय॥
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तुका संगत तिन से कहिए, जिन से सुख दुनाए।
दुर्जन तेरा मूं काला, थीतो प्रेम घटाए॥
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तुका मिलना तो भला, मन सूं मन मिल जाय।
ऊपर-ऊपर माटी घासनी, उनको को न बराय॥
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तुका राम सूं चित बाँध राखूं, तैसा आपनी हात।
धेनु बछरा छोर जावे, प्रेम न छूटे सात॥
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तुका राम बहु मीठा रे, भर राखूं शरीर।
तन की करुं नाब री, उतारूँ पैल तीर॥
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तुकादास राम का, मन में एकहिं भाव।
तो न पालटू आवे, येही तन जाय॥
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तुका सुरा बहुत कहावे, लड़न बिरला कोय।
एक पावे ऊँच पदवी, एक खौसा जोय॥
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तुका इच्छा मिटी नहिं तो, काहा करे जटा ख़ाक।
मथीया गोलाडार दिया तो, नहिं मिले फेर न ताक॥
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काफर सोही आप न बुझे, आला दुनिया भर।
कहे तुका सुनो रे भाई, हिरदा जिन्ह का कठोर॥
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तुका सुरा नहिं शबद का, जहाँ कमाई न होय।
चोट सहे घन की रे, हिरा नीबरे तोय॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere