संत केशवदास के दोहे
भजन भलो भगवान को, और भजन सब धंध।
तन सरवर मन हँस है, केसो पूरन चँद॥
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सतगुरु मिल्यो तो का भयो, घट नहिं प्रेम प्रतीत।
अंतर कोर न भींजई, ज्यों पत्थल जल भीत॥
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आस लगें बासा मिलै, जैसी जा की आस।
इक आसा जग बास है, इक आसा हरि पास॥
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जगजीवन घट-घट बसै, करम करावन सोय।
बिन सतगुरु केसो कहै, केहि बिधि दरसन होय॥
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जेहि घर केसो नहिं भजन, जीवन प्रान अधार।
सो घर जम का गेह है, अंत भये ते छार॥
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पंच तत्त गुन तीन के, पिंजर गढ़े अनंत।
मन पंछी सो एक है, पारब्रह्म को अतं॥
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सुरति समानी ब्रह्म में, दुबिधा रह्यो न कोय।
केसो संभलि खेत में, परै सो सँभलि होय॥
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सात दीप नौ खंड के, ऊपर अगम अबास।
सबद गुरु केसो भजै, सो जन पावै बास॥
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आसा मनसा सब थकी, मन निज मनहिं मिलान।
ज्यों सरिता समुँदर मिली, मिटि गो आवन जान॥
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केसो दुबिधा डारि दे, निर्भय आतम सेव।
प्रान पुरुष घट-घट बसै, सब महँ सब्द अभेव॥
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ऐसो संत कोइ जानि है, सत्त सब्द सुनि लेह।
केसो हरि सों मिलि रहो, नेवछावर करि देह॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere