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उम्मीद पर दोहे

आस लगें बासा मिलै, जैसी जा की आस।

इक आसा जग बास है, इक आसा हरि पास॥

संत केशवदास

कबै मनोरथ सिद्ध ये, ह्वै हैं मेरे लाल।

सतसंगति तें दूर नहिं, जानें रसिक रसाल॥

नागरीदास

कब बृंदावन-घरनि में, चरन परैंगे जाय।

लोटि धूरि धरि सीस पर, कछु मुखहूँ में पाय॥

नागरीदास

कबै रसीली कुंज में हौ करिहौ परवेस।

लखि-लखि लताजु लहलही, चित्त ह्वैगो आवेस॥

नागरीदास

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