रूपसरस के दोहे
गलबहियाँ कब देखिहौं, इन नयमन सियराम।
कोटि चन्द्र छबि जगमगी, लज्जित कोटिन काम॥
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
हँस बीरी रघुबर लई, सिय मुख पंकज दीन।
सिया लीन कर कंज में, प्रीतम मुख धरि दीन॥
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
हे सीते नृप नंदिनी, हे प्रीतम चितचोर।
नवल बधू की वीटिका, लीजे नवल किशोर॥
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
रघुबर प्यारी लाड़ली, लाड़लि प्यारे राम।
कनक भवन की कुंज में, बिहरत है सुखधाम॥
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
निरखि सहचरी युगल छबि, बार-बार बलिहार।
करत निछावर विविध विधि, गज मोतिन के हार॥
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
रंग रंगीली लाड़ली, रंग रंगीलो लाल।
रंग रंगीली अलिन में, कब देखौं सियलाल॥
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere