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रूपसरस

रामभक्ति शाखा के रसिक संप्रदाय से संबद्ध भक्त-कवि।

रामभक्ति शाखा के रसिक संप्रदाय से संबद्ध भक्त-कवि।

रूपसरस के दोहे

गलबहियाँ कब देखिहौं, इन नयमन सियराम।

कोटि चन्द्र छबि जगमगी, लज्जित कोटिन काम॥

हँस बीरी रघुबर लई, सिय मुख पंकज दीन।

सिया लीन कर कंज में, प्रीतम मुख धरि दीन॥

हे सीते नृप नंदिनी, हे प्रीतम चितचोर।

नवल बधू की वीटिका, लीजे नवल किशोर॥

रघुबर प्यारी लाड़ली, लाड़लि प्यारे राम।

कनक भवन की कुंज में, बिहरत है सुखधाम॥

निरखि सहचरी युगल छबि, बार-बार बलिहार।

करत निछावर विविध विधि, गज मोतिन के हार॥

रंग रंगीली लाड़ली, रंग रंगीलो लाल।

रंग रंगीली अलिन में, कब देखौं सियलाल॥

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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