रीतिकाल
काव्यशास्त्र की विशेष परिपाटी का अनुसरण करने के कारण 1643 ई. से 1843 ई. के समय को साहित्य का रीतिकाल कहा गया है। घोर शृंगार काव्य के अतिरिक्त इस दौर में भावुक प्रेम, वीरता और नीतिपरक कविताएँ लिखी गईं।
रीतिकाल के नीतिकवि। हिंदी के पहले संबोधन काव्य के रचयिता। 'राजिया' को संबोधित सोरठों के लिए समादृत।
रीतिकालीन आचार्य कवि। काव्यांग विवेचन और नायिकाभेद के लिए स्मरणीय।
डिंगल भाषा के श्रेष्ठ कवि। वीर रस से ओत-प्रोत काव्य के लिए उल्लेखनीय।
चरखारी (बुंदेलखंड) के महाराज विक्रमसाहि के दरबारी कवि। ब्रजभाषा में रचित वीरकाव्य 'लक्ष्मणशतक' के लिए स्मरणीय।
रीतिकाल और आधुनिककाल के संधि कवि। कृष्ण-भक्ति के पद पुरानी परिपाटी में लिखे। पदों में रूपक और उपमाओं की सुंदर प्रयोग।
रीतिकालीन कवि और अनुवादक। कलाकुशल और साहित्यमर्मज्ञ। चमत्कारिता के लिए प्रसिद्ध।
सिक्खों के दसवें और अंतिम गुरु। 'खालसा पंथ' के संस्थापक। 'चंडी-चरित्र' के रचनाकार।
जीवन के व्यावहारिक पक्ष के आलोक में नीति, वैराग्य और अध्यात्म के प्रस्तुतकर्ता। नीतिपरक कुंडलियों के लिए प्रसिद्ध।
रीतिकालीन कवि। शृंगार और वीर रस की कविताओं में निष्णात। 'हम्मीर हठ' कीर्ति का आधार ग्रंथ।
'राधावल्लभ संप्रदाय' से संबंधित। भाव-वैचित्र्य और काव्य-प्रौढ़ता के लिए विख्यात।
अल्पज्ञात कवि। महाभारत कथा पर आधारित प्रबंधकाव्य 'विजय मुक्तावली' के लिए स्मरणीय।
बुंदेलखंड के प्रतापी नरेश। प्रसिद्ध कवि भूषण के संरक्षक।
रीतिकाल के अंतिम वर्षों में सक्रिय कवयित्री। भक्ति, नीति और शृंगार कविता के वर्ण्य-विषय।
मारवाड़ के राजा और रीतिकालीन कवि आचार्य। अलंकार निरूपण ग्रंथ 'भाषा भूषण' से हिंदी-संसार में प्रतिष्ठित।
रासो काव्य परंपरा के अंतिम कवियों में से एक। प्रबंध काव्य 'हम्मीर रासो' से प्रसिद्ध।
रीतिमुक्त काव्यधारा के महत्त्वपूर्ण कवि। लोकोक्तियों के मधुर प्रयोग के लिए विख्यात।