रीतिकाल

काव्यशास्त्र की विशेष परिपाटी का अनुसरण करने के कारण 1643 ई. से 1843 ई. के समय को साहित्य का रीतिकाल कहा गया है। घोर शृंगार काव्य के अतिरिक्त इस दौर में भावुक प्रेम, वीरता और नीतिपरक कविताएँ लिखी गईं।

शिवनारायणी संप्रदाय

1716 -1791

शिवनारायणी संप्रदाय के प्रवर्तक। वाणियों में स्वावलंबन और स्वानुभूति पर विशेष ज़ोर। भोजपुरी भाषा का सरस प्रयोग।

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