रीतिकाल

काव्यशास्त्र की विशेष परिपाटी का अनुसरण करने के कारण 1643 ई. से 1843 ई. के समय को साहित्य का रीतिकाल कहा गया है। घोर शृंगार काव्य के अतिरिक्त इस दौर में भावुक प्रेम, वीरता और नीतिपरक कविताएँ लिखी गईं।

टट्टी संप्रदाय

'टट्टी संप्रदाय' से संबद्ध। कविता में वैराग्य और प्रेम दोनों को एक साथ साधने के लिए स्मरणीय।

1723 -1801 ओरछा

'टट्टी संप्रदाय' के अष्टाचार्यों में से अंतिम। रसरीति के कुशल व्याख्याता एवं वैराग्य के धनी।

ब्रजभाषा के भक्त कवि। टट्टी संप्रदाय से संबद्ध।

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