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रीतिकाल

काव्यशास्त्र की विशेष परिपाटी का अनुसरण करने के कारण 1643 ई. से 1843 ई. के समय को साहित्य का रीतिकाल कहा गया है। घोर शृंगार काव्य के अतिरिक्त इस दौर में भावुक प्रेम, वीरता और नीतिपरक कविताएँ लिखी गईं।

बावरी संप्रदाय

अठारहवीं सदी के संत कवि। पदों में हृदय की सचाई और भावों की निर्भीक अभिव्यक्ति। स्पष्ट, सरल, ओजपूर्ण और मुहावरेदार भाषा का प्रयोग।

संत यारी के शिष्य और गुलाल साहब और संत जगजीवन के गुरु। सुरत शब्द अभ्यासी सरल चित्त संतकवि।

समय : 18वीं सदी। बावरी पंथ ग़ाज़ीपुर शाखा के संत गुलाल साहब के शिष्य। चमत्कार-विरोधी। नाम-स्मरण के सुगम पथ के राही।

रीतिकालीन निर्गुण संत। वर्णन शैली रोचक और भाषा में अरबी-फ़ारसी का प्रयोग। बावरी संप्रदाय से संबद्ध।

संत यारी के शिष्य। आध्यात्मिक अनुभव को सरल भाषा में प्रस्तुत करने वाले अलक्षित संत-कवि।

रीतिकालीन निर्गुण संतकवि और संत बुल्ला साहब के प्रधान शिष्य। वाणियों की मुख्य विषय-वस्तु अध्यात्म, प्रेम और शांति की कामना।

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