दौलत कवि के दोहे
ससि सौं अति सुंदर न मुष, अंग न सुंदर जान।
त प्रीतम रहे बस भयौ, ऐसो प्रेम प्रधान॥
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प्रीतम आगम सुनत तिय, हिय मैं अति हुलसात।
आनंद के अँसुवा नयन, मुकता सुरत दिवात॥
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लाज तजी जिहि काज जग, बैरि कियौ मुख हेरि।
तो पिय सौं हित मूढ़ मैं, तोरत करी न बेरि॥
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अंग मोतिन के आभरन, सारी पहिरैं स्वेत।
चली चाँदनी रैन में, प्रिया प्रानपति हेत॥
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रीझ लैन पिय पैं चली, लिय सषिगन कौं गैल।
चहूँ ओर मुखचंद की, रही चाँदनी फैल॥
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तनकौ लाग उसीर तन, घन चंदन कौ नीर।
करत सु मार से मार तिहि, मारत तीर समीर॥
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रचत रहैं भूषन बसन, मो मुख लखै सुहाय।
ज्यौं-ज्यौं सब कै बस भये, त्यौं-त्यौं रहौं लजाय॥
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चली लाज यह काज तजि, मिल्यौ न तहाँ नंदनंद।
भई सु आतप चाँदनी, भयौ भानु सो चंद॥
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लाज तजी, गुरु लोक डर, तजी जगत की कान।
सखी पराये आपने, सनख न पीव निदान॥
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जब ब्याही यह बाल, तब, अलि सब सिखयौ मान।
अरु सिखयौ है रूसनौ, अरु सिखयौ पछितान॥
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उमड़ रहे घन सघन अति, रही रैन अँधियार।
स्याम रंग सारी दुरी, चली पीउ पैं नार॥
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चली बाल पिय पास अति, भरी प्रेम रस-भार।
कह्यौ अली कित, लाज बस, लगी सँचारन हार॥
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लाज छुटी कुलकान अरु, छुट्यौ सखिनि सुख साज।
कहा कहिय सखि बस न कछु, निठुर भये बृजराज॥
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प्रीतम कौ तिय सौं मिलन, ह्वै परतच्छ कहाय।
नेह भरे नैननि दोऊ, रहे अमित सुख पाय॥
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जा दिन तैं चरचा भई, तुमहि चलन की लाल।
बिसरि गई बोलनि हसनि, ता दिन तैं वह बाल॥
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पिय नैननि मैं बसत सो, बढ़े कहा तुव नैन।
मंद हँसी, लाजन मरी, सुनत सखी के बैन॥
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मेरे नैन चकोर नित, चहैं सुधा मुखचंद।
पै इन चतुर सखीनि मैं, अयैं ना सुखकंद॥
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कहा देहुगे जाहु ह्वाँ, रहौ देह तैं दूर।
कठिन बचन सहिए न अब, सनष हिये बच कूर॥
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पिय दुप्त ओढ़ैं पीत पट, नहिं सषियन दरसाहिं।
पिरी परी तन में तऊ, पीर जनावति नाहिं॥
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श्रवन सु पी गुन रूप की, सुनत बात सुख होय।
जैसौ बरनै रूप सखि, नैननि राखै गोय॥
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तिय तन सहज सिंगार हैं, लागी जगमग जोत।
आलिनि संग पिय मैं चली, बाढ्यौ प्रेम उदोत॥
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उमग रचै भूषन बसन, धरै प्रेम अधिकाय।
आजु कहा है? सखि बचन, सुनि तिय रही लजाय॥
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अंकित लखि आदर कियौ, कोमल बचन बिकास।
पिय सौं मान प्रकास किय, तिय मुख हास उदास॥
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नीठ चली आलीनि संग, लष्यौ न तहाँ पिय गेह।
काहू सौं बोली न कछु, परी काम बस देह॥
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लखत रहैं पिय चित्र कौं, दरसन चित्र निहारि।
चित्र लखत पिय कौ सखी, रही चित्र-सी नारि॥
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चलन लगे परदेस कौं, दया नहीं, दुख देत।
राखत हौं पिय हाथ की, मुँदरी कंकन हेत॥
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चाली सकल सिंगार सजि, मिल्यौ न तहाँ सुखकंद।
हसत चल्यौ मुखचंद कौं, लग्यौ हसन मुख चंद॥
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सखियन संग कौतुक करौ, काहे रहौ उदास।
सासु कह्यौ किय सजल दृग, उत्तर भयौ उसास॥
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लाज भरी देषत सु मग, रचै सुमन के हार।
चतुराई मिस सजत है, भूषन बसन सिंगार॥
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करि सिंगार दिन में अली, चली मिलन सुखकंद।
सारी जरी पहिरैं करी, पूरी दुपहरी मंद॥
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मैं नहिं मान्यौ रोस तैं, पिय बच हित सरसाहिं।
रूठि चल्यौ तब, कहा कहुँ, तुमहु मनायौ नाहिं॥
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करि राखे भूषन बसन, साँझहिं तैं सु तैयारि।
मंदिर के पट खोलि कैं, पौढ़ि रही सुकुमारि॥
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सषि, मनु लै मनुहार करि, पाय परयौ जब पीव।
कह्यौ न मान्यौ मैं, कियौ, लाज काम बस जीव॥
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चलत पियहि तन बाल के, भयो बिरह दरसान।
सीत पवन दुख सरस मुख, भई पियरई आन॥
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अजौं अली आयौ न पिउ, कहा हेत सु कहै न।
अध विकास नैननि रही, आधे कहि मुख बैन॥
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नित नबीन भूषन बसन, ल्यावै मेरैं काज।
तास करे सरोस द्रग, कहाँ गई मति आज॥
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सोवत प्रीतम सुपन सुख, दरसन स्वप्न कहाय।
पिय मिलाप सुख अमित सखि, नींदहि दियौ मिलाय॥
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पिय लिलार जाबक लसै, अंजन अधर सु पीक।
लाज कह्यौ साँहैं भये, साँहैं करौ अलीक॥
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क्यौं नहिं आयौ, बारबधु, कहि अंगरात जँभात।
राग अलापैं धन मिलै, नैन पुलैं पछितात॥
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बैठी सेज सिंगार सजि, हरष जगत तन जोत।
सखी दिवस हेमंत कौ, ग्रीषम सम क्यौं होत॥
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बारबधू हिय की उमग, चली सु पति के पास।
चित उदार, कहँ रसिकमनि, बोली बचन निरास॥
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आयौ पीहर तैं सुन्यौ, ही हुलसी अति बाम।
बोलि लियौ एकांत तिय, किये काम के काम॥
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तुव हित किय, जब सखिन को, लग्यौ न छिन उपदेस।
सो अब मो तजि जाहुगे, प्रीतम तुम उपदेस॥
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जमुना तीर, समीर तहँ, बहै त्रिबिधि सुख होय।
अजौं न आयौ क्यौं न पिय, करैं दोर द्रग दोय॥
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पाय परै तरजन करौं, तऊ अधिक हिय हेत।
लाज करै नहिं लोक की, मन मान्यौ धन देत॥
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चाह धरै प्रीतम मिलन, सजै सिंगार अपार।
धरै द्वार दृग दीप द्वै, बारबधू तिहिं बार॥
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केलि भवन नंदलाल नहिं, देख्यौ कछु न सुहाय।
रही सु बाल सखीनि त्यौं, भौंह चढ़ाय रुषाय॥
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घनदानी बानी चतुर, मानी पुरुष बिसेस।
हिय बसाय मन साँपियै, सप्ति सो पिय परदेस॥
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पीउ न आयौ सो वनहिं, रह्यौ कहूँ रस पागि।
कहत न काहू लाज सों, रही सोच मग लागि॥
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नीठ धरै मग पाय कौं, परी सखिन बस बाल।
ज्यौं मराल को बाल धर, सीखत नौतन चाल॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere