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दरिया (बिहार वाले)

1634 - 1780 | धरकंधा, बिहार

मुक्ति पंथ के प्रवर्तक। स्वयं को कबीर का अवतार घोषित करने वाले निर्गुण संत-कवि।

मुक्ति पंथ के प्रवर्तक। स्वयं को कबीर का अवतार घोषित करने वाले निर्गुण संत-कवि।

दरिया (बिहार वाले) के दोहे

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भक्ति करे सो सूरमा, तन मन लज्जा खोय।

छैल चिकनिया बिसनी, वा से भक्ति ना होय॥

प्रेम ज्ञान जब उपजे, चले जगत कंह झारी।

कहे दरिया सतगुरु मिले, पारख करे सुधारी॥

माला टोपी भेष नहीं, नहीं सोना शृंगार।

सदा भाव सतसंग है, जो कोई गहे करार॥

सुरति निरति नेता हुआ, मटुकी हुआ शरीर।

दया दधि विचारिये, निकलत घृत तब थीर॥

जब लगि विरह उपजे, हिये उपजे प्रेम।

तब लगि हाथ आवहिं धरम किये व्रत नेम॥

निरखि परखि नीके गुरु कीजे, बेड़ा बांधु संभारी।

कलि के गुरु बड़े प्रपंची, डारि ठगौरी मारी॥

जीव बधन राधन करे, साधन भैरो भूत।

जन्म तुम्हारा मृथा है, श्वान सूकर का पूत॥

मरना-मरना सब कहे, मरिगौ बिरला कोय।

एक बेरि एह ना मुआ, जो बहुरि ना मरना होय॥

नागरी ते आगरी भली, नागरी सागरी संग।

बूँद परा एह सिंधु में, कौन परिखे रंग॥

साखी सबद ग्रंथ पढ़ि, सीख करिहैं नर नारि।

आपन मन बोधा नाहिं, दर्व हरन के झारि॥

गाय की हत्या कहे, महिषी कहे अशुद्ध।

एक हाड़ एक चाम है, एक दहि एक दूध॥

प्रेम मारग बांको बड़ो, समुझि चढ़े कोई जानि।

ज्यों खांडो की धारि है, सतगुरु कहा बखानि॥

दरिया दिल दरपन करो, परसत ऐन अनूप।

ऐन ऐना में दीसे, देखि बिमल एक रूप॥

पढ़ि कुरान फ़ाज़िल हुआ, हाफ़िज़ की ऐसी बात।

सांच बिना मैला हुआ, जीव क़ुरबानी खात।

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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