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भक्तिकाल
लगभग 1318 ई. से 1643 ई. के दरमियान भक्ति-साहित्य की दो धाराएँ विकसित हुईं—एक सगुण धारा, जिसमें रामभक्ति और कृष्णभक्ति की सरस गाथाएँ हैं; दूसरी निर्गुण धारा, जिसमें ज्ञानमार्गी संतों और प्रेममार्गी सूफ़ी-संतों की महान परंपरा है। भारत के सांस्कृतिक और साहित्यिक इतिहास में भक्तिकाल को ‘लोकजागरण’ का स्वर्णयुग माना गया है।
वल्लभ संप्रदाय
1590 -1727
गोकुल
वल्लभ संप्रदाय से संबद्ध। कृष्ण-भक्ति के सरस पदों के लिए ख्यात। साहित्येतिहास ग्रंथों में प्रायः उपेक्षित।