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भक्तिकाल
लगभग 1318 ई. से 1643 ई. के दरमियान भक्ति-साहित्य की दो धाराएँ विकसित हुईं—एक सगुण धारा, जिसमें रामभक्ति और कृष्णभक्ति की सरस गाथाएँ हैं; दूसरी निर्गुण धारा, जिसमें ज्ञानमार्गी संतों और प्रेममार्गी सूफ़ी-संतों की महान परंपरा है। भारत के सांस्कृतिक और साहित्यिक इतिहास में भक्तिकाल को ‘लोकजागरण’ का स्वर्णयुग माना गया है।
नीति कवि
1549 -1600
बीकानेर
बीकानेर नरेश के भाई और अकबर के दरबारी कवि। भक्ति साहित्य के लिए प्रसिद्ध। 'डिंगल' भाषा के प्रधान कवियों में से एक।
1535 -1610
फ़तेहपुर
अकबर के दरबारी कवि। भक्ति और नीति संबंधी कविताओं के लिए स्मरणीय।
1435 -1655
भक्तिकालीन निर्गुण संत। 'असरारे मार्फत' और 'नादिरुन्निकात' कृतियों के रचनाकार।