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भक्तिकाल
लगभग 1318 ई. से 1643 ई. के दरमियान भक्ति-साहित्य की दो धाराएँ विकसित हुईं—एक सगुण धारा, जिसमें रामभक्ति और कृष्णभक्ति की सरस गाथाएँ हैं; दूसरी निर्गुण धारा, जिसमें ज्ञानमार्गी संतों और प्रेममार्गी सूफ़ी-संतों की महान परंपरा है। भारत के सांस्कृतिक और साहित्यिक इतिहास में भक्तिकाल को ‘लोकजागरण’ का स्वर्णयुग माना गया है।
संत कवि
सिक्ख धर्म के तीसरे गुरु और आध्यात्मिक संत। जातिगत भेदभाव को समाप्त करने और आपसी सौहार्द स्थापित करने के लिए 'लंगर परंपरा' शुरू कर 'पहले पंगत फिर संगत' पर ज़ोर दिया।
सिक्खों के नौवें गुरु। निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण। मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतंत्रता के लिए महान शहादत देने वाले क्रांतिकारी संत।
सिक्ख धर्म के आदिगुरु। भावुक और कोमल हृदय के गृहस्थ संत कवि। सर्वेश्वरवादी दर्शन के पक्षधर।
सांगीतिक मधुरिमा के साथ आत्मशुद्धि, विरह और प्रेम को कविता का वर्ण्य-विषय बनाने वाले संतकवि। 'निरंजनी संप्रदाय' से संबद्ध।
मुक्ति पंथ के प्रवर्तक। स्वयं को कबीर का अवतार घोषित करने वाले निर्गुण संत-कवि।
निर्गुण संत। जनश्रुतियों में कबीर के अवतार। हार्दिक सच्चाई और अंतःसाधना के अत्यंत सरस वर्णन के लिए स्मरणीय।
नाथ परंपरा के कवि। चर्पटनाथ के शिष्य। असार संसार में लिप्त जीवों की त्रासदी के सजीव वर्णन के लिए स्मरणीय।
भक्तिकालीन निर्गुण मत की स्त्री संत। 'बावरी संप्रदाय' की संस्थापिका।
दादू के प्रधान शिष्यों में से एक। दया, उदारता और देह की अनित्यता पर सरल भाषा में लिखे पदों के लिए स्मरणीय।
रीतिकाल के निर्गुण संतकवि। संत बुल्ला के शिष्य और 'सतनामी संप्रदाय' के संस्थापक।
भक्तिकालीन निर्गुण संत। 'असरारे मार्फत' और 'नादिरुन्निकात' कृतियों के रचनाकार।
बावरी साहिबा के प्रधान शिष्य और प्रसिद्ध संत यारी साहब के गुरु। जन्म-मृत्यु तिथियाँ अनिश्चित।
भक्तिकाल। संत गद्दन चिश्ती के शिष्य। लालदासी संप्रदाय के प्रवर्तक। मेवात क्षेत्र में धार्मिक पुनर्जागरण के पुरोधा।
दादूदयाल के प्रमुख शिष्यों में से एक। अद्वैत वेदांती और संत कवियों में सबसे शिक्षित कवि।
चरनदास की शिष्या। प्रगाढ़ गुरुभक्ति, संसार से पूर्ण वैराग्य, नाम जप और सगुण-निर्गुण ब्रह्म में अभेद भाव-पदों की मुख्य विषय-वस्तु।
उत्तर भारत में 'निरंजनी संप्रदाय' के संस्थापक। वाणियों में हठयोग और रहस्यवाद की छाप। भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण।