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भक्तिकाल

लगभग 1318 ई. से 1643 ई. के दरमियान भक्ति-साहित्य की दो धाराएँ विकसित हुईं—एक सगुण धारा, जिसमें रामभक्ति और कृष्णभक्ति की सरस गाथाएँ हैं; दूसरी निर्गुण धारा, जिसमें ज्ञानमार्गी संतों और प्रेममार्गी सूफ़ी-संतों की महान परंपरा है। भारत के सांस्कृतिक और साहित्यिक इतिहास में भक्तिकाल को ‘लोकजागरण’ का स्वर्णयुग माना गया है।

रसिक संप्रदाय

रामभक्ति शाखा के रसिक संप्रदाय से संबद्ध भक्त-कवि।

मधुर उपासना से संबंधित रीतिकालीन भक्त कवि।

1504 -1602 दिल्ली

रसिक और संगीत प्रेमी भक्त कवि। 'हरिदासी संप्रदाय' से संबद्ध।

रामभक्ति शाखा के रसिक संप्रदाय से संबद्ध भक्त-कवि।

रामभक्ति शाखा के रसिक संप्रदाय से संबद्ध भक्त-कवि।

रामभक्ति शाखा के रसिक संप्रदाय से संबद्ध कवि।

रामभक्ति शाखा के रसिक संप्रदाय से संबद्ध कवि।

भक्तिकालीन संत। कृष्णदास पयहारी के शिष्य और नाभादास के गुरु। रसिक संप्रदाय के संस्थापक। शृंगार और दास्यभाव की रचनाओं के लिए स्मरणीय।

रामभक्ति शाखा के रसिक संप्रदाय के भक्त-कवि।

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