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एक दिन

ek din

अखिलेश सिंह

एक दिन कुछ नहीं रहेगा

यह जीवन, ये लोग-बाग़

और यह कम-बख़्त शिकायतें भी

ये सब अपनी पूरी वस्तुनिष्ठता में विलुप्त होगीं, एक दिन

और वह एक दिन, हर दिन बीतता है

हर दिन सूरज डूब जाता है

हर दिन चिड़ियाँ सो जाती हैं

थक जाती हैं हर दिन मांसपेशियाँ-कारकुशीलव

प्यार करता है, अपने अभावों के बिछावन पर एक मजूर-युगल हर दिन

झिलमिल करते ये जाल जीवन के एक दिन ज़रूर पुराने पड़ेंगे

गीत नए गाए जाएँगे एक दिन

एक दिन जीवन की बाँसुरी कोई चुरा ले जाएगा

बाँसुरी की चोरी भी तो सुर के लिए ही होगी

किसी सुर से किसी और सुर तक जीवन बजता रहेगा हर दिन

इसी तरह सुर बदलते रहेंगे, छूटते रहेंगे मिल-मिल छूट जाने वाले स्वर

जो पकड़ आया वह जीवन है

आईना जिसकी थाह ले पाया वह जीवन का शेष है

जीवन के बारीक रेशों में मधुमक्खियाँ बुनती रहेंगी

सरसो गेहूँ और सरकंडे के फूलों की रस-डोर

फिर भी एक दिन कुछ नहीं रहेगा

शब्द नहीं रहेंगे

छल नहीं रहेगा

जुटता विलुपता प्रतीत नहीं रहेगा।

स्रोत :
  • रचनाकार : अखिलेश सिंह
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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