अरे ओ लफ़्फ़ाज़ियों की जुगाली करने वालो
are o laffaziyon ki jugali karne valo
महमूद दरवेश
Mahmoud Darwish

अरे ओ लफ़्फ़ाज़ियों की जुगाली करने वालो
are o laffaziyon ki jugali karne valo
Mahmoud Darwish
महमूद दरवेश
और अधिकमहमूद दरवेश
अरे ओ लफ़्फ़ाज़ियों की जुगाली करने वालो,
अपनी शोहरत का तामझाम समेटो और यहाँ से जाओ
हमारे वक़्त में सेंध लगाओ और यहाँ से जाओ
समंदर के नीलेपन और यादों की रेत में से तुम जो भी चाहो,
चुरा ले जाओ
जो तस्वीरें चाहो उतार ले जाओ, ताकि तुम वह समझ सको
जो तुम कभी नहीं समझ पाओगे :
कि हमारी ज़मीन का एक पत्थर आसमान की छत कैसे बनाता है।
अरे ओ लफ़्फ़ाज़ियों की जुगाली करने वालो,
तुम्हारी तरफ़ से ख़ंजर—और हमारी तरफ़ से हमारा ख़ून
तुम्हारी तरफ़ से आग और गोले—और हमारी तरफ़ से हमारा गोश्त
तुम्हारी तरफ़ से एक और टैंक—और हमारी तरफ़ से एक पत्थर
तुम्हारी तरफ़ से आँसूगैस—और हमारी तरफ़ से बारिश
जबकि जो आसमान और हवा हमारे सिर पर, वही आसमान और हवा
तुम्हारे सिर पर,
लिहाज़ा हमारे ख़ून में से अपना प्याला भरो और यहाँ से जाओ
डिनर-डांस की रंगरेलियाँ उड़ाकर यहाँ से जाओ,
मगर हमें, अपने शहीदों के फूलों का ख़याल रखना है
हमें अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ अपनी ज़िंदगी जीनी है।
अरे ओ लफ़्फ़ाज़ियों की जुगाली करने वालो,
तपती धूल की तरह तुम बेशक गुज़रो, मगर टिड्डियों की तरह
हमारे बीच मत मँडराओ, क्योंकि हमें अपने मुल्क में काम करने हैं
हमें गेहूँ उगाना है और अपने जिस्मों की ओस से उसकी सिंचाई
करनी है,
यहाँ हमारे पास ऐसी चीजें हैं जो तुम्हें रास नहीं आएँगी :
मस्लन एक पत्थर या एक तीतर,
लिहाज़ा गुज़िश्ता वक़्त को, अगर चाहो तो, गुजिश्ता चीज़ों के बाज़ार में
ले जाओ
और, अगर मर्ज़ी हो, तो परिंदे को उसकी हड्डियाँ लौटा दो,
यहाँ मिट्टी की रक़ाबी में हमारे पास जो चीज़ें हैं उनसे तुम्हें
तसल्ली नहीं होगी—
हमारे पास भविष्य हैं, और अपने मुल्क में करने के लिए काम है
अरे ओ लफ़्फ़ाज़ियों की जुगाली करने वालो,
अपने सारे धोखे एक गहरे गड्ढे में भर दो और यहाँ से जाओ
वक़्त का हाथ सुनहरे बछड़े के दस्तूर को लौटा दो
या पिस्तौल की मौसीक़ी की धुन को
क्योंकि यहाँ हमारे पास जो चीज़ें हैं उनसे तुम्हें तसल्ली नहीं होगी,
लिहाज़ा तुम यहाँ से जाओ!
हमारे पास वो है जो तुम्हारे पास नहीं है :
ख़ून में नहाए बाशिंदों का एक ख़ूनआलूदा वतन
वह वतन, जो याददाश्त या गुमनामी में ही रहने के क़ाबिल है।
अरे ओ लफ़्फ़ाज़ियों की जुगाली करने वालो,
तुम्हारे जाने का वक़्त आ चुका है,
जहाँ मर्ज़ी हो जाकर रहो, मगर हमारे बीच मत रहो,
तुम्हारे जाने का वक़्त आ चुका है,
जहाँ मर्ज़ी हो जाकर मरो, मगर हमारे बीच मत मरो,
क्योंकि हमारे पास हमारे मुल्क में करने को काम है।
यहाँ का अतीत हमारा है
ज़िंदगी का पहला रुदन हमारा है
वर्तमान और भविष्य हमारा है—
जो दुनिया यहाँ है, वो हमारी है—और जो दुनिया
अभी शक्ल लेने को है, वो भी हमारी है...
लिहाज़ा हमारे मुल्क को बख़्शो
हमारे समंदरी किनारे को, हमारे समंदर को
हमारे गेहूँ, हमारे नमक, हमारे ज़ख़्म को, यानी कि
मिहरबानी करके हरेक चीज़ को बख़्शो
और यादों की सरगुजश्त को उसके अपने हाल पर छोड़ दो,
अरे ओ, लफ़्फ़ाज़ियों की जुगाली करने वालो!
- पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 463)
- रचनाकार : महमूद दरवेश
- प्रकाशन : मेधा बुक्स
- संस्करण : 2003
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