तक्षशिला : फणीश सिंह पुस्तक-वृत्ति 2024-25 के लिए प्रस्ताव आमंत्रित
हिन्दवी डेस्क
13 अगस्त 2024

तक्षशिला फणीश सिंह पुस्तक-वृत्ति 2024-25—बौद्धिक वर्ग के लिए महत्त्वपूर्ण सूचना है। गत वर्ष आरंभ हुई यह पुस्तक-वृत्ति अपने प्रथम संस्करण में अजय कुमार को प्राप्त हो चुकी है। अजय कुमार बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय (लखनऊ, उत्तर प्रदेश) के सोशियोलॉजी विभाग से हैं और दलित पत्रकारिता पर किताब लिख रहे हैं। इस सिलसिले में अगली पुस्तक-वृत्ति आपको मिल सकती है। कैसे, इसके लिए नीचे दिए गए बिंदुओं पर ध्यान दीजिए :
• अगर हिंदी में शोधपरक कथेतर पुस्तक लिखने की आपकी कोई योजना है तो आपका स्वागत है। तक्षशिला : फणीश सिंह पुस्तक-वृत्ति के लिए हमें उपयुक्त पात्र की तलाश है।
• प्रविष्टि भेजने के लिए धर्म/लिंग/जाति/उम्र अथवा अन्य क़िस्म की कोई बाध्यता नहीं है।
• आप अपनी योजना का स्वरूप (सिनाप्सिस) हिंदी में लिखकर 30 सितंबर 2024 तक fellowship@takshila.net पर भेज दें। अपने पहले के लेखन के ब्योरों के साथ अधिकतम 5000 शब्दों में। उसके साथ कृपया अपना परिचय भी संलग्न करें।
• पुस्तक-वृत्ति के लिए आए प्रस्तावों में से शुरुआती स्क्रीनिंग के बाद अंतिम चयन सम्मानित निर्णायक-मंडल (जूरी) करेगा।
• सम्मानित जूरी के सदस्य हैं :
प्रताप भानु मेहता
निवेदिता मेनन
सतीश पांडे
फ़राह नक़वी
• इस समूची प्रक्रिया के संयोजक अपूर्वानंद होंगे।
• पुस्तक लिखने के क्रम में आवश्यकतानुसार निर्णायक मंडल के सदस्य आपके मार्गदर्शन के लिए उपलब्ध रहेंगे।
• पुस्तक-वृत्ति की घोषणा दिसंबर-2024 के पहले हफ़्ते में कर दी जाएगी।
• पुस्तक-वृत्ति की अवधि एक साल है और इसकी कुल राशि 12 लाख रुपए है, जिसमें 70,000 रुपए प्रतिमाह और शेष पुस्तक लिखने के बाद दी जाएगी।
'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए
कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें
आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद
हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे
बेला पॉपुलर
सबसे ज़्यादा पढ़े और पसंद किए गए पोस्ट
14 अप्रैल 2025
इलाहाबाद तुम बहुत याद आते हो!
“आप प्रयागराज में रहते हैं?” “नहीं, इलाहाबाद में।” प्रयागराज कहते ही मेरी ज़बान लड़खड़ा जाती है, अगर मैं बोलने की कोशिश भी करता हूँ तो दिल रोकने लगता है कि ऐसा क्यों कर रहा है तू भाई! ऐसा नहीं
08 अप्रैल 2025
कथ्य-शिल्प : दो बिछड़े भाइयों की दास्तान
शिल्प और कथ्य जुड़वाँ भाई थे! शिल्प और कथ्य के माता-पिता कोरोना के क्रूर काल के ग्रास बन चुके थे। दोनों भाई बहुत प्रेम से रहते थे। एक झाड़ू लगाता था एक पोंछा। एक दाल बनाता था तो दूसरा रोटी। इसी तर
16 अप्रैल 2025
कहानी : चोट
बुधवार की बात है, अनिरुद्ध जाँच समिति के समक्ष उपस्थित होने का इंतज़ार कर रहा था। चौथी मंजिल पर जहाँ वह बैठा था, उसके ठीक सामने पारदर्शी शीशे की दीवार थी। दफ़्तर की यह दीवार इतनी साफ़-शफ़्फ़ाक थी कि
27 अप्रैल 2025
रविवासरीय : 3.0 : इन पंक्तियों के लेखक का ‘मैं’
• विषयक—‘‘इसमें बहुत कुछ समा सकता है।’’ इस सिलसिले की शुरुआत इस पतित-विपथित वाक्य से हुई। इसके बाद सब कुछ वाहवाही और तबाही की तरफ़ ले जाने वाला था। • एक बिंदु भर समझे गए विवेक को और बिंदु दिए गए
12 अप्रैल 2025
भारतीय विज्ञान संस्थान : एक यात्रा, एक दृष्टि
दिल्ली की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी के बीच देश-काल परिवर्तन की तीव्र इच्छा मुझे बेंगलुरु की ओर खींच लाई। राजधानी की ठंडी सुबह में, जब मैंने इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से यात्रा शुरू की, तब मन क