Font by Mehr Nastaliq Web

‘कनुप्रिया’ की भूमिका

धर्मवीर भारती रचित ‘कनुप्रिया’ नई कविता की विशिष्ट रचना है। इस रचना में ‘राधा’ की वेदना को नए रूप में प्रस्तुत किया गया है। ‘कनुप्रिया’ दो शब्दों—‘कनु’ और ‘प्रिया’ से मिलकर बना है। धर्मवीर भारती ने इस रचना में ‘राधा’ के लिए कनुप्रिया शब्द का प्रयोग किया है। 

राधा, कृष्ण के लिए लोक में प्रयोग शब्दों जैसे कान्हा, कन्हैया का प्रयोग न करके उन्हें ‘कनु’ कहकर संबोधित करती हैं। यहाँ कृष्ण को ‘कनु’ कहकर पुकारना, प्रेम में अपने प्रिय को विशेष नाम से पुकारने जैसा है। अत: ‘कनुप्रिया’ का अर्थ हुआ—कृष्ण को प्रेम करने वाली अर्थात् राधा। 

यहाँ प्रस्तुत है ‘कनुप्रिया’ की प्रस्तावना :

ऐसे तो क्षण होते ही हैं, जब लगता है कि इतिहास की दुर्दांत शक्तियाँ अपनी निर्मम गति से बढ़ रही है, जिनमें कभी हम अपने को विवश पाते हैं, कभी विक्षुब्ध, कभी विद्रोही और प्रतिशोधयुक्त, कभी वल्गाएँ हाथ में लेकर गतिनायक या व्याख्याकार, तो कभी चुपचाप शाप या सलीब स्वीकार करते हुए आत्मबलिदानी उद्धारक या त्राता... लेकिन ऐसे भी क्षण होते हैं, जब हमें लगता है कि यह सब जो बाहर का उद्वेग है—महत्त्व उसका नहीं है—महत्त्व उसका है जो हमारे अंदर साक्षात्कृत होता है—चरम तन्मयता का क्षण जो एक स्तर पर सारे बाह्य इतिहास की प्रक्रिया से ज़्यादा मूल्यवान् सिद्ध हुआ है, जो क्षण हमें सीपी की तरह खोल गया है—इस तरह कि समस्त बाह्य—अतीत, वर्तमान और भविष्य—सिमटकर उस क्षण में पुंजीभूत हो गया है, और हम हम नहीं रहे!

प्रयास तो कई बार यह हुआ है कि कोई ऐसा मूल्यस्तर खोजा जा सके जिस पर ये दोनों ही स्थितियाँ अपनी सार्थकता पा सके—पर इस खोज को कठिन पाकर दूसरे आसान समाधान खोज लिए गए हैं—मसलन इन दोनों के बीच एक अमिट पार्थक्य रेखा खींच देना—और फिर इस बिंदु से खड़े होकर उस बिंदु को, और उस बिंदु से खड़े होकर इस बिंदु को मिथ्या भ्रम घोषित करना। ...या दूसरी पद्धति यह रही है कि पहले वह स्थिति जी लेना, उसकी तन्मयता को सर्वोपरि मानना—और बाद में दूसरी स्थिति का सामना करना, उसके समाधान की खोज में पहली को बिल्कुल भूल जाना। इस तरह पहली को भूलकर, दूसरी और तीसरी से अब फिर पहली की ओर निरंतर हटते-बढ़ते रहना—धीरे-धीरे इस असंगति के प्रति न केवल अभ्यस्त हो जाना वरन् इसी असंगति को महानता का आधार मान लेना। (यह घोषित करना कि अमुक मनुष्य या प्रभु का व्यक्तित्व ही इसीलिए असाधारण है कि वह दोनों विरोधी स्थितियाँ बिना किसी सामंजस्य के जी सकने में समर्थ है।)

लेकिन वह क्या करे जिसने अपने सहज मन से जीवन जिया है, तन्मयता के क्षणों में डूबकर सार्थकता पाई है, और जो अब उद्-घोषित महानताओं से अभिभूत और आतंकित नहीं होता, बल्कि आग्रह करता है कि वह उसी सहज की कसौटी पर समस्त को कसेगा।

ऐसा ही आग्रह है—‘कनुप्रिया’ का।

लेकिन उसका यह प्रश्न और आग्रह उसकी प्रारंभिक कैशौर्य-सुलभ मन स्थितियों से ही उपजकर धीरे-धीरे विकसित होता गया है। इस कृति का काव्यबोध भी उन विकास-स्थितियों को उनकी ताज़गी में ज्यों-का-त्यों रखने का प्रयास करता चलता है। ‘पूर्वराग’ और ‘मंजरी-परिणय’ उस विकास का प्रथम चरण, ‘सृष्टि-संकल्प’ द्वितीय चरण तथा महाभारत काल से जीवन के अंत तक शासक, कूटनीतिज्ञ, व्याख्याकार कृष्ण के इतिहास निर्माण को कनुप्रिया की दृष्टि से देखने वाले खंड—‘इतिहास’ तथा ‘समापन’ इस विकास का तृतीय चरण चित्रित करते हैं।

लेखक के पिछले दृश्यकाव्य में एक बिंदु से इस समस्या पर दृष्टि-पात किया जा चुका है—गांधारी, युयुत्सु और अश्वत्थामा के माध्यम से। ‘कनुप्रिया’ उनसे सर्वथा पृथक्—बिल्कुल दूसरे बिंदु से चलकर उसी समस्या तक पहुँचती है, उसी प्रक्रिया को दूसरे भावस्तर से देखती है और अपने अनजाने में ही प्रश्न के ऐसे संदर्भ उद्घाटित करती है जो पूरक सिद्ध होते हैं। पर यह सब उसके अनजाने में होता है, क्योंकि उसकी मूलवृत्ति संशय या जिज्ञासा नहीं भावानुकूल तन्मयता है।

कनुप्रिया की सारी प्रतिक्रियाएँ उसी तन्मयता की विभिन्न स्थितियाँ है!

'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए

Incorrect email address

कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें

आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद

हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे

06 अगस्त 2024

मुझे यक़ीन है कि अब वह कभी लौटकर नहीं आएँगे

06 अगस्त 2024

मुझे यक़ीन है कि अब वह कभी लौटकर नहीं आएँगे

तड़के तीन से साढ़े तीन बजे के बीच वह मेरे कमरे पर दस्तक देते, जिसमें भीतर से सिटकनी लगी होती थी। वह मेरा नाम पुकारते, बल्कि फुसफुसाते। कुछ देर तक मैं ऐसे दिखावा करता, मानो मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा हो

23 अगस्त 2024

उन सबके नाम, जिन्होंने मुझसे प्रेम करने की कोशिश की

23 अगस्त 2024

उन सबके नाम, जिन्होंने मुझसे प्रेम करने की कोशिश की

मैं तब भी कुछ नहीं था, और आज भी नहीं, लेकिन कुछ तो तुमने मुझमें देखा होगा कि तुम मेरी तरफ़ उस नेमत को लेकर बढ़ीं, जिसकी दुहाई मैं बचपन से लेकर अधेड़ होने तक देता रहा। कहता रहा कि मुझे प्यार नहीं मिला, न

13 अगस्त 2024

स्वाधीनता के इतने वर्ष बाद भी स्त्रियों की स्वाधीनता कहाँ है?

13 अगस्त 2024

स्वाधीनता के इतने वर्ष बाद भी स्त्रियों की स्वाधीनता कहाँ है?

रात का एक अलग सौंदर्य होता है! एक अलग पहचान! रात में कविता बरसती है। रात की सुंदरता को जिसने कभी उपलब्ध नहीं किया, वह कभी कवि-कलाकार नहीं बन सकता—मेरे एक दोस्त ने मुझसे यह कहा था। उन्होंने मेरी तरफ़

18 अगस्त 2024

एक अँग्रेज़ी विभाग के अंदर की बातें

18 अगस्त 2024

एक अँग्रेज़ी विभाग के अंदर की बातें

एक डॉ. सलमान अकेले अपनी केबिन में कुछ बड़बड़ा रहे थे। अँग्रेज़ी उनकी मादरी ज़बान न थी, बड़ी मुश्किल से अँग्रेज़ी लिखने का हुनर आया था। ऐक्सेंट तो अब भी अच्छा नहीं था, इसलिए अपने अँग्रेज़ीदाँ कलीग्स के बी

17 अगस्त 2024

जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ : बिना काटे भिटवा गड़हिया न पटिहैं

17 अगस्त 2024

जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ : बिना काटे भिटवा गड़हिया न पटिहैं

कवि जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ (1930-2013) अवधी भाषा के अत्यंत लोकप्रिय कवि हैं। उनकी जन्मतिथि के अवसर पर जन संस्कृति मंच, गिरिडीह और ‘परिवर्तन’ पत्रिका के साझे प्रयत्न से जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ स्मृति संवाद कार्य

बेला लेटेस्ट

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

पास यहाँ से प्राप्त कीजिए