गाँव-गिराँव से विश्वविद्यालय की ओर
अनुराग शुभम
27 नवम्बर 2025
वैकल्पिक प्रश्न पत्र—हबीब तनवीर—की क्लास ख़त्म हुई। कैंटीन में जाकर खाना खाया और 7 नंबर गेट से बाहर आकर, सड़क पार करके 8 नंबर गेट पर आइडेंटिटी कार्ड दिखाते हुए पुन: विश्वविद्यालय में प्रवेश किया। चार क़दम चला कि हिंदी विभाग के कुछ जूनियर्स के साथ एक स्त्री और उनका बेटा खड़े दिखे। वे सभी आपस में बातचीत कर रहे थे। पास पहुँचा तो देखा माँ और बेटे दोनों की आँखों में आँसू थे। सैकड़ों दुखों, ग़मों को छिपाने वाली माँ पहली बार मिले अनजान लोगों के बीच अपने आँसू नहीं रोक पा रही थी।
मैंने उनसे पूछा—“आंटी जी क्या हुआ?”
उनकी आँख से आँसू झर-झर बह रहे थे। मुझे मालूम चला कि बेटे का जामिया मिल्लिया इस्लामिया, हिंदी विभाग (बी.ए.) में एडमिशन हुआ है और वह गोरखपुर से अपने बेटे के साथ आई हैं—उसका एडमिशन कैंसिल करवाने। एडमिशन कैंसिल करवाने का सीधा-साफ़ कारण है—फ़ीस देने की असक्षमता और दिल्ली में रहने का ख़र्चा। गाँव-गिराँव का आदमी जिसके परिवार की कुल कमाई ही सात से आठ हज़ार रुपए हो, वह दिल्ली जैसे शहर में आकर रहने की सोचकर ही निराश हो जाता है और उसके पढ़ने-लिखने कुछ कर गुज़रने के सपने दम तोड़ने लगते हैं।
मेरे वहाँ पहुँचने से पहले साथी रंगेश ने उन्हें काफ़ी सांत्वना देकर समझाया और एडमिशन रद्द न करवाने की उम्मीद उनके अंदर भरने की पूरी कोशिश की। हमने उस विद्यार्थी के साथ ज्योग्राफ़ी (भूगोल) विभाग तक जाने का फ़ैसला किया और फ़ॉर्म जमा करने साथ चल पड़े।
आंटी से हमारी बात होने लगी। उन्होंने बताया कि वे सुबह साढ़े सात बजे गोरखपुर से दिल्ली पहुँचे थे। वहाँ से सीधा विश्वविद्यालय पहुँचकर एडमिशन कैंसिल करवाने ऑफ़िस पहुँच गए और वहाँ बैठे फ़ैयाज आलम सर से उनकी मुलाक़ात हुई, उन्होंने भी उन्हें एडमिशन कैंसिल न करवाने के लिए समझाया। आंटी ने आगे बताया कि फ़ैयाज सर ने उनके बेटे की दसवीं-बारहवीं की मार्कशीट देखी और ज़ोर देकर कहा कि एडमिशन कैंसिल न करवाइए, आपका लड़का पढ़ने में अच्छा है... आगे अच्छा कर ले जाएगा। उन्होंने हॉस्टल मिलने की संभावना से आश्वस्त किया।
दिल्ली के जेएनयू और हैदराबाद विश्वविद्यालय की तरह यहाँ हॉस्टल तुरंत नहीं मिलता। उसकी एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है, जिसमें इंटरव्यू आदि शामिल है। इसी बीच पीछे से दो विद्यार्थी बातचीत करते हुए जा रहे थे कि हॉस्टल की लिस्ट आने वाली है... यार पॉइंट तो कम है, लेकिन एक प्रोफ़ेसर से फ़ोन करवा दिया है, देखो क्या होता है? बीते कुछ रोज़ पहले हैदराबाद विश्वविद्यालय के एक मित्र से बात हो रही थी—“उसने बताया कि जैसे ही एडमिशन हुआ, शाम तक हॉस्टल की चाभी मिल गई।”
फ़ैयाज सर ने उन्हें अपना नंबर भी दिया और हर संभव मदद करने का ढाढ़स बँधाया। एक तरफ़ जहाँ केंद्र सरकार विश्वविद्यालयों को दिए जाने वाले फ़ंड कम कर रही है, वहीं दूसरी ओर विश्वविद्यालयों को अब फ़ंड नहीं सरकार अथॉरिटी हेफ़ा (हायर एजुकेशन फ़ंडिंग अथॉरिटी) से लोन दिया जा रहा है। देशभर में फ़ीस वृद्धि आम प्रक्रिया हो गई है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने हाल ही में अपनी फ़ीस बढ़ाई है। फ़ीस वृद्धि और फ़ंड कम किया जाना, आम प्रक्रिया के साथ-साथ वैश्विक प्रक्रिया भी हो गई है। देश-दुनिया में भी शिक्षा को लगातार महँगा किया जा रहा है। अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प (उनकी सरकार) द्वारा कई विश्वविद्यालयों के फ़ंड में कमी की गई। ऐसे माहौल में फ़ैयाज सर द्वारा दिया गया सम्बल ही विश्वविद्यालयों को बचाए हुए है।
मैंने भी उन्हें समझाने की कोशिश की और ढाढ़स बँधाया कि आंटी आपके बच्चे का जहाँ एडमिशन हुआ है, वह देश के सबसे बेहतरीन संस्थानों में से एक संस्थान है। इसे यहीं पढ़ने दीजिए। आप तो बहुत जागरुक हैं, जो अपने बच्चे को यहाँ तक लेकर आई हैं।
आंटी बताने लगीं—“इनके पिता के पैर में सरिया परल है, वो लेके ना आई सकते भइया। अभी मध्यप्रदेश भी लेके गइल रहली, उहाँ भी एक जगह एडमिशन भइल रहल। तीन हज़ार खाना के लागत रहल और दो सौ हॉस्टल के। लकिन बच्चा बतवलस की जितना ठीक पढ़ाई यहाँ के बा, उतना ठीक वहाँ के नाही रहल।”
राजनीति विज्ञान विभाग के साथी पुष्कर भी तब तक वहाँ आ गए और उनसे भोजपुरी में बतियाने लगे—“रोआ जिन चाची तोहराके तो खुश होवे के चाही की इतना बढ़िया जगह तोहरे लड़का के एडमिशन भइल बा। बड़े-बड़े घर के लड़का परीक्षा न निकल पवलेन तोहराके तो खुश होवे के चाही। इहां कोई टाटा-बिड़ला के घर के नइखे पढ़त है, सब रऊआ मती बानी एडमिशन जिन कैंसिल करवावा।” तब तक और विद्यार्थी जो देवरिया, बलिया, मऊ, छपरा से थे वहाँ आ पहुँचे। पुष्कर उन सब से भी मिलवाकर उन्हें सम्बल देने लगे, “सब अपने ही यहाँ के है चिंता न कीजिए।”
इस सब के बीच रंगेश फ़ॉर्म भरवाकर लौट आया। आंटी अब ख़ुश थी, आँसू की जगह हल्की मुस्कान ने ले ली थी। उन्हें अब साढ़े पाँच बजे आनंद विहार रेलवे स्टेशन से सत्याग्रह एक्सप्रेस पकड़ते हुए घर जाना है। रंगेश ने उन्हें आनंद विहार जाने वाले बस का नंबर (514) बता दिया है।
आंटी पूछ रही हैं—“भइया तब इनके हम फिर कब वापस भेज देई दिल्ली...?”
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