आज ‘बेला’ का जन्मदिन है
अविनाश मिश्र
09 अप्रैल 2025
आज ‘बेला’ का जन्मदिन है।
गत वर्ष वे देवियों के दिन थे, जब हिन्दी और ‘हिन्दवी’ के व्यापक संसार में ‘बेला’ का प्राकट्य हुआ था। देवियों की उपस्थिति और कला—रूप और कथ्य दोनों ही स्तरों पर—अत्यंत समृद्ध होती है। यह समृद्धि मनुष्य की रक्षा करती है और भाषा की भी।
आज से ठीक एक वर्ष पूर्व हिन्दवी बेला का शुभारंभ एक ऐसे अदबी ठिकाने की तलाश में हुआ; जहाँ सिर्फ़ अदब ही नहीं, आर्ट और कल्चर और ज़ुबानों में रोज़-ब-रोज़ क्या हुआ, हो रहा और होने वाला है... इसकी इंदराजी नज़र आए। यह रजिस्टर कुछ इस क़दर खुले कि एक ऐसी घड़ी की शक्ल ले ले; जिसे कला, साहित्य और संस्कृति का समय जानने के लिए जब चाहे देखा जा सके।
गए 365 दिनों में हमने ‘बेला’ पर सबसे ज़्यादा जिस चीज़ का ध्यान रखा है, उसे समय में नियमितता कहते हैं। नियमितता—यानी regularity, नियमबद्धता, बाक़ायदा। रात-बिरात, दिन-दिनांत, देह-देहांत, अवकाश-अनवकाश, हारी-बीमारी, आँधी-पानी, शीत-लू, बाढ़-भूकंप, पलायन-विस्थापन, सुख-दुःख, आगमन-प्रस्थान... हमने किसी भी प्रकार की बाधा से ‘बेला’ की नियमितता को प्रभावित नहीं होने दिया। इस साधना-अनुशासन में ‘बेला’ पर 365 दिनों में 360+ पोस्ट्स प्रकाशित हुई हैं और 175+ रचनाकार जुड़े हैं। हमने विविधता और हस्तक्षेप के सम्मिलित स्वर-शैली में ‘बेला’ का संगीत संभव करने की कोशिश की है।
इस दरमियान ‘बेला’ पर हिंदी की सबसे नवीन पीढ़ी और विचारोत्तेजक आवाज़ें दर्ज हुई हैं। हमने दैनिक अख़बारों के फ़ीचर विभाग की पुरानी, लेकिन अब डूब-धुँधला चुकी विरासत को ‘बेला’ के ज़रिए ऑनलाइन नवीकृत एवं अद्यतन करने और बचाने की कोशिश की है। इस प्रयत्न में हमने वैचारिकता, प्रतिबद्धता और सुंदरता को अशक्त नहीं होने दिया है। हमें व्यक्तियों के आहत होने से ज़्यादा चिंता, मूल्यों के आहत होने की है। हमने 'बेला' की भाषा को अख़बारी ढंग से साहित्यिक और साहित्यिक ढंग से अख़बारी बनाने पर बल दिया है।
हमने हिंदी की ऑनलाइन साहित्यिक पत्रकारिता में स्तंभ-लेखन की वापसी कराई है। हमारी देखा-देखी दूसरे मंच भी अब इस यत्न में संलग्न हुए हैं। यह ख़ुशी की बात है। व्यंग्य से बचने वाले मंच अब उसकी धार से घायल होने को तैयार हैं, यह ‘बेला’ की कामयाबी है। हमने स्तंभ-लेखन में नवाचार को प्रमुखता से प्रवेश दिया है। इस क्रम में जेएनयू क्लासरूम के क़िस्से, जापान डायरी, सूफ़ी साहित्य की तस्वीर, काम से मुक्ति, Clubhouse के दिनों से, क़ुबूलनामा जैसे स्तंभ शुरू और सफलतापूर्वक समाप्त हुए, वहीं जगह-जगह, रविवासरीय : 3.0, दास्तान-ए-गुरूज्जीस जैसे स्तंभ जारी हैं और भविष्य में कुछ नए स्तंभ प्रस्तावित हैं, आने वाले हैं।
सूचना और रपट, सिनेमा और रंगमंच, यात्रा और स्मरण, समीक्षा और संस्मरण, कथा और कथेतर, संवाद और अनुवाद, विवाद और अपवाद, प्रश्न और प्रसंग, अलंकार और पुरस्कार, लोक और अध्यात्म, सुझाव और सलाह, मत और पत्र, संगीत समारोह और पुस्तक मेले, अवसाद और दुर्लभ तस्वीरों से ‘बेला’ ने एक वर्ष के भीतर-भीतर ही एक ऐसी आर्काइव तैयार कर दी है, जिसकी समकालीनता और विश्वसनीयता चकित करती है।
इस अवसर पर हम अपने सभी रचनाकारों, कलाकारों, स्तंभकारों, रिपोर्टरों, अनुवादकों, सलाहकारों, शुभचिंतकों, धूमकेतुओं, इंद्रधनुषों, तारों, ग्रहों, उपग्रहों, नक्षत्रों, स्रोतों को पूरे दिल से शुक्रिया कहते हैं। आप सबके बग़ैर 'बेला' के शुभारंभ का यह वैविध्यमय विस्तार संभव नहीं हो सकता था और भविष्य में भी इस विस्तार के विस्तार में आपका योगदान होना ही है।
‘बेला’ की नियमितता को निर्बाध रखने में ‘हिन्दवी’ के संपादकीय, सोशल मीडिया और कला-विभाग की भी बड़ी भूमिका है। इस सिलसिले में हरि कार्की, शुभम रॉय, संचित भट्ट और रचित के नाम बहुत उल्लेखनीय हैं।
धन्यवाद!
'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए
कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें
आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद
हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे
बेला पॉपुलर
सबसे ज़्यादा पढ़े और पसंद किए गए पोस्ट
25 अक्तूबर 2025
लोलिता के लेखक नाबोकोव साहित्य-शिक्षक के रूप में
हमारे यहाँ अनेक लेखक हैं, जो अध्यापन करते हैं। अनेक ऐसे छात्र होंगे, जिन्होंने क्लास में बैठकर उनके लेक्चरों के नोट्स लिए होंगे। परीक्षोपयोगी महत्त्व तो उनका अवश्य होगा—किंतु वह तो उन शिक्षकों का भी
06 अक्तूबर 2025
अगम बहै दरियाव, पाँड़े! सुगम अहै मरि जाव
एक पहलवान कुछ न समझते हुए भी पाँड़े बाबा का मुँह ताकने लगे तो उन्होंने समझाया : अपने धर्म की व्यवस्था के अनुसार मरने के तेरह दिन बाद तक, जब तक तेरही नहीं हो जाती, जीव मुक्त रहता है। फिर कहीं न
27 अक्तूबर 2025
विनोद कुमार शुक्ल से दूसरी बार मिलना
दादा (विनोद कुमार शुक्ल) से दुबारा मिलना ऐसा है, जैसे किसी राह भूले पंछी का उस विशाल बरगद के पेड़ पर वापस लौट आना—जिसकी डालियों पर फुदक-फुदक कर उसने उड़ना सीखा था। विकुशु को अपने सामने देखना जादू है।
31 अक्तूबर 2025
सिट्रीज़ीन : ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना
सिट्रीज़ीन—वह ज्ञान के युग में विचारों की तरह अराजक नहीं है, बल्कि वह विचारों को क्षीण करती है। वह उदास और अनमना कर राह भुला देती है। उसकी अंतर्वस्तु में आदमी को सुस्त और खिन्न करने तत्त्व हैं। उसके स
18 अक्तूबर 2025
झाँसी-प्रशस्ति : जब थक जाओ तो आ जाना
मेरा जन्म झाँसी में हुआ। लोग जन्मभूमि को बहुत मानते हैं। संस्कृति हमें यही सिखाती है। जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से बढ़कर है, इस बात को बचपन से ही रटाया जाता है। पर क्या जन्म होने मात्र से कोई शहर अपना ह