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गंगानाथ झा

1872 - 1941 | मधुबनी, बिहार

संस्कृत, हिंदी, मैथिली और अँग्रेज़ी के विद्वान एवं शिक्षाशास्त्री। ‘कवि-रहस्य' पुस्तक के प्रसिद्ध।

संस्कृत, हिंदी, मैथिली और अँग्रेज़ी के विद्वान एवं शिक्षाशास्त्री। ‘कवि-रहस्य' पुस्तक के प्रसिद्ध।

गंगानाथ झा के उद्धरण

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काव्य में वस्तुओं के गुण या दोष कवि की उक्ति पर ही निर्भर करता है।

कवि वस्तु-स्वभाव के अधीन नहीं है।

‘अभी रहने दें फिर समाप्त कर लूँगा’—‘फिर इससे शुद्ध करूँगा’—‘मित्रों के साथ सलाह करूँगा’—इत्यादि प्रकार की यदि कवि के मन में चंचलता हो तो इससे (भी) काव्य का नाश होता है।

काव्य करने के पहले कवि का कर्त्तव्य है—उपयोगी विद्या तथा उपविद्याओं का अनुशीलन करना।

परोक्ति का अपहरण कवि को ‘अकवि’ बना देता है। इससे यह सर्वथा त्याज्य है।

कवि तीन प्रकार के होते हैं—(1) शास्त्रकवि, (2) काव्यकवि, (3) शास्त्रकाव्योभयकवि। कुछ लोगों का सिद्धांत है कि इनमें सबसे श्रेष्ठ शास्त्रकाव्योभयकवि, फिर काव्यकवि, फिर शास्त्रकवि। पर यह ठीक नहीं। अपने-अपने क्षेत्र में तीनों ही श्रेष्ठ हैं—जैसे राजहंस चंद्रिका का पान नहीं कर सकता, पर नीरक्षीरविवेक वही करता है।

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प्रतिभा और व्युत्पत्ति दोनों जिसमें हैं, वही ‘कवि’ है।

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‘शास्त्र’ के सभी विद्या-स्थानों का एकमात्र आधार ‘काव्य’ है।

सबसे पहले कवि को अपनी योग्यता का विचार कर लेना चाहिए—मेरा संस्कार कैसा है, किस भाषा में काव्य करने की शक्ति मुझमें है, जनता की रुचि किस ओर है, यहाँ के लोगों ने किस तरह की किस सभा में शिक्षा पाई है, किधर किसका मन लगता है; यह सब विचार करके तब किस भाषा में काव्य करेंगे इसका निर्णय करना होगा। पर यह सब भाषा का विचार उन कवियों को आवश्यक होगा जो एकदेशी आंशिक कवि हैं। जो सर्वतंत्रस्वतंत्र हैं, उनके लिए जैसी एक भाषा वैसी सब भाषा।

गुण और अलंकारसहित वाक्य ही को ‘काव्य’ कहते हैं।

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दूसरों के रचित शब्द और अर्थ का अपने प्रबंध में निवेश करना ‘हरण’, ‘चोरी’, ‘Plagiarism’ कहलाता है।

कवि को स्मितपूर्वाभिभाषी होना चाहिए—जब बोले हँसता हुआ बोले। बातें गंभीर अर्थ वाली कहे। सर्वत्र रहस्य, असल तत्त्व का अन्वेषण करता रहे। दूसरा कवि जब तक अपना काव्य सुनावे, तब तक उसमें दोषोद्भावन करे—सुनाने पर जो यथार्थ हो सो कह देवे।

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बालकों के, स्त्रियों के और नीच जातियों के काव्य बहुत जल्दी मुख से मुख फैल जाते हैं।

राजा का कर्त्तव्य यह है कि कवि-समाज का आयोजन करे।

वाक्य ही को ‘वचन’ ‘उक्ति’ कहते हैं।

परप्रयुक्त पदों को बचाना असंभव है।

कवि का जैसा स्वभाव है, वैसा ही उसका काव्य होता है।

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