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बेला

साहित्य और संस्कृति की घड़ी

बिंदुघाटी : वाचालता एक भयानक बीमारी बन चुकी है

 

• संभवतः संसार की सारी परंपराओं के रूपक-संसार में नाविक और चरवाहे की व्याप्ति बहुत अधिक है। गीति-काव्यों, नाटकों और दार्शनिक चर्चाओं में इन्हें महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।  आधुनिक समाज-विज्ञान न

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13 जुलाई 2025

आज का उद्धरण

कवि कह गया है

अधिकतर अज्ञानता के सुख-दुःख की आदत थी। ज्ञान के सुख-दुःख बहुतों को नहीं मालूम थे। जबकि ज्ञान असीम अटूट था। ज्ञान सुख की समझ देता था पर सुख नहीं देता था।

आज का रचनाकार

रचनाकार का समय और समय का रचनाकार

सियारामशरण गुप्त

द्विवेदीयुगीन कवि। हिंदी की गांधीवादी राष्ट्रीय धारा के प्रतिनिधि कवि के रूप में समादृत।

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आज की कविता

कविता अब भी संभावना है

जग में अब भी गूँज रहे हैं

जग में अब भी गूँज रहे हैं गीत हमारे;

शौर्य, वीर्य्य, गुण हुए अब भी हमसे न्यारे।

सियारामशरण गुप्त

ई-पुस्तकें

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हिंदी के नए बालगीत

रमेश तैलंग 

1994

गीतों में विज्ञान

सोम्या 

1993

दोहा-कोश

राहुल सांकृत्यायन 

1957

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मदनमोहन राजेन्द्र 

1972

बाँकीदास-ग्रंथावली

रामनारायण दूगड़ 

1931

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इशरत आफ़रीं 

2015

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