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बेला

साहित्य और संस्कृति की घड़ी

हे राम : दास्तान-ए-क़त्ल-ए-गांधी

 

जिससे उम्मीदें-ज़ीस्त थी बाँधी ले उड़ी उसको मौत की आँधी गालियाँ खाके गोलियाँ खाके मर गए उफ़्फ़! महात्मा गांधी! — रईस अमरोहवी  एक दिल्ली में वह मावठ का दिन था। 30 जनवरी 1948 को दुपहर तीन बजे

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02 अक्तूबर 2024

आज का रचनाकार

रचनाकार का समय और समय का रचनाकार

सियारामशरण गुप्त

द्विवेदीयुगीन कवि। हिंदी की गांधीवादी राष्ट्रीय धारा के प्रतिनिधि कवि के रूप में समादृत।

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