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गुरु नानक

1469 - 1539 | ननकाना साहिब, पंजाब

सिक्ख धर्म के आदिगुरु। भावुक और कोमल हृदय के गृहस्थ संत कवि। सर्वेश्वरवादी दर्शन के पक्षधर।

सिक्ख धर्म के आदिगुरु। भावुक और कोमल हृदय के गृहस्थ संत कवि। सर्वेश्वरवादी दर्शन के पक्षधर।

गुरु नानक की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 10

पउणु गुरू पाणी पिता माता धरति महतु।

दिनसु राति दुई दाई दाइआ खेलै सगल जगतु॥

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नानक गुरु संतोखु रुखु धरमु फुलु फल गिआनु।

रसि रसिआ हरिआ सदा पकै करमि सदा पकै कमि धिआनि॥

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धंनु सु कागदु कलम धनु भांडा धनु मसु।

धनु लेखारी नानका जिनि नाम लिखाइआ सचु॥

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मेरे लाल रंगीले हम लालन के लाले।

गुर अलखु लखाइआ अवरु दूजा भाले॥

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साचा साहिबु साचु नाइ भाखिआ भाउ अपारु।

आखहि मंगहि देहि देहि दाति करै दातारु॥

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सबद 36

उद्धरण 1

यदि अहं भाव करता हूँ तो हे ईश्वर! तू प्राप्त नहीं होता और यदि तू प्राप्त हो जाता है तो अहं-भाव नहीं रह पाता।

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