सबद
गोरखनाथ के ‘सबदी’ को बाद के संत कवियों ने ‘सबद’ बना लिया। संतों की आत्मानुभूति ‘सबद’ कहलाती है। सबद गेय होते हैं और राग-रागिनियों में बंधे हुए होते हैं। ‘सबद’ का प्रयोग आंतरिक अनुभव-आह्लाद के व्यक्तीकरण के लिए किया जाता है।
सिक्ख धर्म के तीसरे गुरु और आध्यात्मिक संत। जातिगत भेदभाव को समाप्त करने और आपसी सौहार्द स्थापित करने के लिए 'लंगर परंपरा' शुरू कर 'पहले पंगत फिर संगत' पर ज़ोर दिया।
सिक्खों के दसवें और अंतिम गुरु। 'खालसा पंथ' के संस्थापक। 'चंडी-चरित्र' के रचनाकार।
सिक्खों के नौवें गुरु। निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण। मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतंत्रता के लिए महान शहादत देने वाले क्रांतिकारी संत।
सांगीतिक मधुरिमा के साथ आत्मशुद्धि, विरह और प्रेम को कविता का वर्ण्य-विषय बनाने वाले संतकवि। 'निरंजनी संप्रदाय' से संबद्ध।
मुक्ति पंथ के प्रवर्तक। स्वयं को कबीर का अवतार घोषित करने वाले निर्गुण संत-कवि।
संत यारी के शिष्य और गुलाल साहब और संत जगजीवन के गुरु। सुरत शब्द अभ्यासी सरल चित्त संतकवि।
राजस्थान के पाँच पीरों में से एक। जाति से क्षत्रिय और वृत्ति से संत। हिंदू-मुस्लिम सौहार्द के सबसे बड़े पक्षधर। दोनों धर्मों में समान रूप से पूज्य।
संत यारी के शिष्य। आध्यात्मिक अनुभव को सरल भाषा में प्रस्तुत करने वाले अलक्षित संत-कवि।
रीतिकाल के निर्गुण संतकवि। संत बुल्ला के शिष्य और 'सतनामी संप्रदाय' के संस्थापक।
भक्तिकाल के निर्गुण संतकवि। वाणियों में प्रेम, विरह, और ब्रह्म की साधना के गहरे अनुभव। जनश्रुतियों में संत दादू के अवतार।
बावरी साहिबा के प्रधान शिष्य और प्रसिद्ध संत यारी साहब के गुरु। जन्म-मृत्यु तिथियाँ अनिश्चित।