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पद

पद छंद की ही एक विधा है। छंदों में मात्राओं या वर्णों की संख्या या क्रम निश्चित होते हैं, जबकि पद वर्णों या मात्राओं की गणना से मुक्त होता है। तुकांतता के निर्वाह से पद गेय होते हैं, इसलिए प्राचीन कवियों ने पदों पर शीर्षक के रूप में प्रायः रागों के नाम ही दिए हैं। पदों की परंपरा हिंदी साहित्य में विद्यापति से शुरू हुई जो भक्तिकाव्य से होती हुई छायावाद में महादेवी वर्मा तक निर्बाध चलती रही।

1713

राधाकृष्ण भक्त। विष्णु स्वामी संप्रदाय से संबंध। वंशीअली के शिष्य। युगल भक्ति के कोमल पदों के लिए स्मरणीय।

1957

नवें दशक के महत्त्वपूर्ण कवि। अपने काव्य-वैविध्य और लोक-संवेदना के लिए उल्लेखनीय।

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