चाँदनी पर दोहे
चाँदनी चाँद की रोशनी
है जो उसके रूप-अर्थ का विस्तार करती हुई काव्य-अभिव्यक्ति में उतरती रही है।
पत्रा ही तिथि पाइयै, वा घर के चहुँ पास।
नित प्रति पून्यौईं रहै, आनन-ओप-उजास॥
उस नायिका के घर के चारों ओर इतना प्रकाश रहता है कि केवल पंचांग की सहायता से ही तिथि का पता लग सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि नायिका का मुख पूर्णिमा के चंद्रमा के समान सुंदर है। इसलिए नायिका के घर के चारों ओर हमेशा पूर्णिमा ही बनी रहती है, परिणामस्वरूप तिथि की जानकारी ही नहीं हो पाती है। यदि कोई तिथि जानना चाहता है तो उसके लिए उसे पंचांग से ही सहायता लेनी पड़ती है।
तुलसी बिलसत नखत निसि, सरद सुधाकर साथ।
मुकुता झालरि झलक जनु, राम सुजसु सिसु हाथ॥
तुलसीदास जी कहते है कि शरत्पूर्णिमा के चंद्रमा के साथ रात्रि में नक्षत्रावली ऐसी शोभा देती है, मानो श्री राम जी के सुयश रूपी शिशु के हाथ में मोतियों की झालर झलमला रही हो।
सरद चंद की चाँदनी, को कहियै प्रतिकूल।
सरद चंद की चाँदनी, कोक हियै प्रतिकूल॥
शरद ऋतु के चंद्रमा की चाँदनी किसके हृदय के विरुद्ध है—किसके हृदय को अच्छी नहीं लगती, इसका उत्तर यह है कि ‘कोक हिये’ अर्थात् कोक (चकवे) के हृदय को शरद् ऋतु के चाँद की चाँदनी भी अच्छी नहीं लगती।