समुद्र के किनारे एक गाँव था। उसमें एक कलाकार रहता था। वह दिनभर समुद्र की लहरों से खेलता रहता, जाल डालता और सीपियाँ बटोरता। रंग-बिरंगी कौड़ियाँ, नाना रूप के सुंदर-सुंदर शंख, चित्र-विचित्र पत्थर, न जाने क्या-क्या समुद्र-जाल में भर देता। उनसे वह तरह-तरह
एक थी लड़की। नाम था उसका वल्ली अम्माई। आठ बरस की थी। उसे अपने घर के दरवाज़े पर खड़े होकर सड़क की रौनक़ देखना बड़ा अच्छा लगता था। वल्ली अम्माई को अपना नाम भी बड़ा अच्छा लगता था। वैसे, दुनिया में ऐसा कौन होगा जिसे अपना नाम पसंद न हो? सड़क पर वल्ली
सहसा मेरी पाँच वर्ष की लाड़ली बेटी मिनी ‘अगड़म बगड़म’ का खेल छोड़कर खिड़की की तरफ़ भागी और ज़ोर-ज़ोर से पुकारने लगी, “काबुलीवाले, ओ काबुलीवाले!” मैं इस समय उपन्यास लिख रहा था। नायक, नायिका को लेकर अँधेरी रात में जेल की ऊँची खिड़की से नीचे बहती नदी
Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts
जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश