
आप कभी भी इतने बूढ़े नहीं होते हैं कि कोई और लक्ष्य निर्धारित न कर सकें या कोई नया सपना न देख पाएँ।

जितना हम अपने कर्मों को निर्धारित करते हैं, उतना ही हमारे कर्म हमें निर्धारित करते हैं।
आप कभी भी इतने बूढ़े नहीं होते हैं कि कोई और लक्ष्य निर्धारित न कर सकें या कोई नया सपना न देख पाएँ।
जितना हम अपने कर्मों को निर्धारित करते हैं, उतना ही हमारे कर्म हमें निर्धारित करते हैं।