आम रास्ता नहीं है
काल के अहाते के बीचों-बीच सीधी लकीर-सी खिंची पगडंडी पकड़कर जनपद के अधिवासी चले जा रहे हैं, चले जा रहे हैं।
कोमल दल किसलय हैं तो फल-फूल के यौवन-भार से लदी लता-वल्लरियाँ भी हैं। अरण्य के अलमस्त साखी हैं तो उफनाती दरिया के तटवर्ती पेड़ भी हैं।
ये नन्हे-मुन्ने!