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गाय पर दोहे

गाय भारतीय सांस्कृतिक

परंपरा में एक मूल्यवान और पवित्र पशु की हैसियत रखती है और लोक-जीवन का अभिन्न अंग रही है। उसे आम और सरल के प्रतीक रूप में भी देखा जाता है। गाय के नाम पर हत्याओं ने इसे कविता में एक राजनीतिक संदर्भ भी प्रदान किया है।

कबीर यहु जग अंधला, जैसी अंधी गाइ।

बछा था सो मरि गया, ऊभी चांम चटाइ॥

यह संसार अँधा है। यह ऐसी अँधी गाय की तरह है, जिसका बछड़ा तो मर गया किंतु वह खड़ी-खड़ी उसके चमड़े को चाट रही है। सारे प्राणी उन्हीं वस्तुओं के प्रति राग रखते हैं जो मृत या मरणशील हैं। मोहवश जीव असत्य की ओर ही आकर्षित होता है।

कबीर

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