नंदलाल संग लग गए, बुध बिचार बर ज्ञान।
अब उपदेसनि जोग ब्रज, आयो कौन सयान॥
ब्रज में उपदेश देने के लिए उद्धव को आया जानकर गोपियाँ परस्पर कहती हैं कि हमारी बुद्धि, विचार और ज्ञान पहले ही श्रीकृष्ण के साथ चले गए, अब यहाँ ऐसा कौन है जो किसी का उपदेश सुन सके! फिर न जाने कोई चतुर हमें उपदेश देने क्यों आया है। भाव यह कि हम यहाँ उद्धव के निर्गुणवाद का उपदेश नहीं सुनना चाहती।
पगीं प्रेम नंदलाल कैं, हमैं न भावत जोग।
मधुप राजपद पाइकै, भीख न माँगत लोग॥
गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि हे भ्रमर! श्रीकृष्ण के प्रेम में तन्मय हुई हमें तुम्हारी यह योग की बातें अच्छी नहीं लगतीं। राज्य-पद को पाकर भला भीख माँगना किसको अच्छा लगेगा। भाव यह है कि जैसे राज्य पाकर कोई भीख नहीं माँग सकता वैसे ही श्रीकृष्ण के प्रेम के सामने तुम्हारे योग की बातें भी हमें अच्छी नहीं लगतीं।
को अवराधे जोग तुव, रहु रे मधुकर मौन।
पीतांबर के छोर तैं, छोर सकैं मन कौन॥
गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि यहाँ तुम्हारे बताए हुए योग की आराधना कौन करे अर्थात कोई नहीं कर सकता। इसलिए तुम यहाँ योग की चर्चा मत करो और दूर हो जाओ। भला हमारे मन को पीतांबरधारी श्रीकृष्ण के पल्ले से कौन छुड़ा सकता है!