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आवाज़ें-145
अंतोनियो पोर्चिया
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ई मन चंचल ई मन चोर
ई मन चंचल ई मन चोर, ई मन शुद्ध ठगहार।मन-मन करते सुर-नर मुनि जहँड़े, मन के लक्ष दुवार॥
कबीर
गजबै ई गाँव-समाज अहय?
ई का जानइ की बूढ़ पुरनियन कै कइसे सम्मान करी।ई का जानइ कि ई गलती इनकै केतना नुसकान करी।
अनुज नागेंद्र
ई जगत जाल सें निरबारौ
ई जगत जाल सें निरबारौ, महाराज कृपाकर मोय तारौ।मूसरधार परी बृज ऊपर, गोबरधन नख पै धारौ।
देवीदीन
मुफ़्त ही मुफ़्त
खौयो मन उनको मिल्यो सो तुमरे ई हिये
खौयो मन उनको मिल्यो सो तुमरे ई हिये,जब अपनायो तब उनको सिरानी गात।