खौयो मन उनको मिल्यो सो तुमरे ई हिये
khauyo man unko milyo so tumre i hiye
पंडित युगलकिशोर मिश्र
Pandit Yugalkishor Mishra
खौयो मन उनको मिल्यो सो तुमरे ई हिये
khauyo man unko milyo so tumre i hiye
Pandit Yugalkishor Mishra
पंडित युगलकिशोर मिश्र
और अधिकपंडित युगलकिशोर मिश्र
खौयो मन उनको मिल्यो सो तुमरे ई हिये,
जब अपनायो तब उनको सिरानी गात।
फेरि मन तुमहूँ गँवायो सोऽब पायो हम,
जानी कहूँ होत है न अपनो विरानो तात॥
भाल लाल जावक लै तुम ब्रजराज आये,
रजनी बिताय जब जान्यो कै निरानो प्रात।
रूप अनुरूप मुख रावरो विलोकि अजू,
हेरत ही हेरत सो मो मन हिरानो जात॥
- पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 490)
- संपादक : महालचंद बयेद
- रचनाकार : पंडित युगलकिशोर मिश्र
- प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
- संस्करण : 1937
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