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ई पुरखन कै गाँव

ii purkhan kai gaanv

अनीस देहाती

अनीस देहाती

ई पुरखन कै गाँव

अनीस देहाती

और अधिकअनीस देहाती

    आलस, इरखादोख जहाँ,

    ना पावैं कबहूँ ठाँव।

    पुरखन कै गाँव, भैकरा!

    पुरखन कै गाँव।

    गाँव भरे का होत भिनउखा,

    मुरगै बोलि जगावैं।

    बालक-बूढ़-जवान सबै मिलि,

    परभू कै गुन गावैं।

    नर-नेहमान जहाँ पै देउता

    जइसी पूजा पावैं।

    भीख रकत कै कबौ चाहें,

    थोरेन मा सुख पावैं।

    घरी दुइ घरी काम करैं,

    तौ सोझ करैं करिहाँव।

    पुरखन कै गाँव, भैकरा!

    पुरखन कै गाँव।

    कै असनान ध्यान की खातिर,

    हेरी जाय पुजाही।

    देउतन की कोठरी से बाटै,

    सबकै आवाजाही।

    टोवत-टावत उठीं धधरका,

    घर कै बूढ़ी माई।

    लरिकन का झकझोरि जगावैं,

    उठि के करा पढ़ाई।

    खुद रहि गईं बेचारौ अनपढ़,

    कसकै अबहूँ घाव।

    पुरखन कै गाँव, भैकरा!

    पुरखन कै गाँव।

    अपनी चिन्ता से पहिले,

    गोरू कै चारा-पानी।

    जेकरे बलबूते पै पंचौ,

    बाटै होत किसानी।

    खेते-खेते होइ गै नारी,

    दूर भई सब चिन्ता।

    खेतीबारी सौ सोने के,

    सुखी अहै सब जनता।

    गल्ला से बखार भरि जाई,

    पंचौ अबकी दाँव।

    पुरखन कै गाँव, भैकरा!

    पुरखन कै गाँव।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनीस देहाती
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए शैलेंद्र कुमार शुक्ल द्वारा चयनित

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