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गजबै ई गाँव-समाज अहय?

gajabai ii gaanv samaj ahay?

अनुज नागेंद्र

अनुज नागेंद्र

गजबै ई गाँव-समाज अहय?

अनुज नागेंद्र

और अधिकअनुज नागेंद्र

    गवा जमाना पुरखन कै, अब बना कोढ़ मा खाज अहय।

    गजबै गाँव-समाज अहय।

    नइकी पीढ़ी का जानइ अपनी सुन्दर परिपाटी का।

    का जानइ की चंदन हम समझी था अपनी माटी का।

    का जानइ की बूढ़ पुरनियन कै कइसे सम्मान करी।

    का जानइ कि गलती इनकै केतना नुसकान करी।

    जे पाइस इनकै असिरबाद बना आज सरताज अहय।

    गजबै गाँव-समाज अहय।

    पहिले कै बात बताई का बोली काका दादा कै।

    सब करयं पैलगी छोट-बड़ा इज्जत राखयँ मरजादा कै।

    सब बड़े बुजुरगन गुरुअन का आदर से सीस नवाइ लेयँ।

    ओनकी चरनन कै धूरि लपकि माथे पै वै लपटाइ लेयँ।

    अब केहुका चिन्हतय नहीं केहू, ना तनिकौ अदब लिहाज अहय।

    गजबै गाँव-समाज अहय।

    पहिले सब सबकै मदत करयँ सबके सुख-दुख मा खड़ा रहयँ।

    जौ परय परोजन टोला मा सब हेती मेली अड़ा रहयँ।

    बिगड़ै ना पावइ मरजादा सब तन मन धन लइ फाटि परयँ।

    केहु करय जौ तनिकउ इगिर-दिगिर तौ ओहका सबकेहु डाटि परयँ।

    अब परे परोजने तिउहारे सग भाइउ कै बेरवाज अहय।

    गजबै गाँव-समाज अहय।

    पहिले तौ रान्ह परोसी सब आपस मा हिलि-मिलि रहा करयँ।

    कउड़ा पै सब मिसकउट होय सबसे सब सुख दुख कहा करयँ।

    संझा की बनय रसोई तौ जे जहाँ रहय खाइ लेय।

    ना ऊँच नीच ना भेदभाउ सबकेहु परसादी पाइ लेय।

    अब मन मा इरखादोख भरा जे देखा तुनुकमिजाज अहय।

    गजबै गाँव-समाज अहय।

    कंचित केहुके दरवाजे पै केहु नात कबीला आइ परय।

    तौ सग सोदर से पहिलेन ओहका सारा गाँव मयाइ परय।

    केहु खड़ा पकौड़ी बनवावे, केहु आलू मटर तलाये बा।

    केहु चाय छनाये खड़ा रहय, केहु लेहे सुपारी धाये बा।

    अब बिना बाति के जे देखा एक दूसरे से नाराज अहय।

    गजबै गाँव-समाज अहय।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुज नागेंद्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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