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ये दीप, ये शंख

ye deep, ye shankh

कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर

इसी आत्मा की आरती के ये हैं कुछ दीप, ये है कुछ शंख। दीप तो जलता है अँधेरे में कि हम देख सकें, पर क्या देख सकें? कहाँ निशा का दिग्दिगंतव्यापी अंधकार और कहाँ दीप का दो-चार गज पर ही टूट जाने-वाला प्रकाश? हम क्या देख सकें; बस यही कि अंधकार महान् है और प्रकाश तुच्छ? ना, हम देख सकें यह कि अंधकार लाख डींग मारे कि उसने प्रकाश को समाप्त कर दिया, पर प्रकाश अब भी जीवित है, अमर है—दूसरे शब्दों में दीप शीघ्र ही सूर्योदय का एक विश्वसनीय आश्वासन है। लघु होकर भी दीप की विशिष्टता और मांगलिकता यही है।

और शंख, जो बजता है आरती-पूजा से पहले कि हम सुन सकें, पर क्या सुन सकें? कहाँ रणमेरियों की गर्जना कि ख़ून-खच्चर के चीत्कार में कान पड़ी बात कलेजे उतरे और ढोलों की दमादम कि जूझने की धुन से रोम-रोम में उमड़ उठे और कहाँ बेचारे शंख की ऊँऊँ? तो बस हम सुन लें कि जीवन में युद्ध-संघर्ष महत्त्वपूर्ण है और पूजन-अर्चना क्षुद्र? ना, हम सुन लें यह कि युद्ध का राक्षस लाख गरजे, मानव की नीरव निशीथव्यापी निद्रा को लाख बार जागरण का अंत घोषित करे, मानव-जीवन की अजेय वृत्ति ग़ुलामी नहीं, पूजन-अर्चना है—गुणों के प्रति, चरित्र के प्रति, व्यक्तित्व के प्रति वंदना है। लघु होकर भी शंख की विशेषता और मांगलिकता यही है।

अगले पृष्ठों में ऐसे ही मानवों के संस्मरण हैं, जो साधन या शक्ति के कारण नहीं, साधना और भक्ति के कारण ही दीप्तिमान् है; यहीं मैंने उन्हें कहा है दीप, जो प्रकाश फैलाते हैं और शंख, जो जागरण का संदेश देते हैं।

प्रकाश; चाँदनी-रोशनी-लाइट बल्ब से हो या लैंप-दीप से सदा राह दिखाता है, पर ये तो जीवन के दीप हैं, इनके प्रकाश में हम कौन-सी राह देखें? सड़क-सोपान की राह? ना, जीवन की राह!

जीवन की राह कि जिस पर चला जीवन भट के नहीं, पर जीवन का भटकना क्या? जीवन का भटकना है ग़लत चीज़ों-वैल्यूज़ में अपनी सार्थकता मानना, तो हम इस प्रकाश में देखें कि जीवन की सार्थकता उसके. गुणवान् होने में, नम्र-सेवाशील होने में, दूसरों के लिए उपयोगी होने में है, संहारक या साधन-संपन्न होने में नहीं—यह साधन संपनता घन की हो, बल की हो, पद की हो, या बुद्धि की हो!

और जागरण; जागना-जागृति-चैतन्य, जो मनुष्य को चिंतन-सोच-विचार-देता है; पर इन शंखों के जागरण में हम क्या सोचें? क्या नून-तेल-लकड़ी की बात? ना, वह चिंतन नहीं चिंता है। जागरण है स्वप्न का उल्य। स्वप्न में हम मिथ्या को यथार्थ, अशुभ को शुभ और अकार्य को कार्य भी मानें, तो सुख मिलता है, पर जागरण में अयथार्थ अयथार्थ है और यथार्थ यथार्थ, तो हम सोचें जानें-मानें कि मनुष्य की उच्चता यह नहीं है कि वह अपने लिए जिए, दूसरों को अपने लिए समझे या दूसरी को अपने लिए जीने-मरने को कर सके। उसकी उच्चता है यह कि वह दूसरों के लिए जिए, दूसरों के लिए उपयोगी होकर जिए।

और भी साफ़ यों कि वह मनुष्य सम्माननीय नहीं है, जो अपने लिए कुछ या सब कुछ उपार्जित करता है। वास्तव में सम्माननीय है वह, जो दूसरों के लिए कुछ या सब कुछ समर्पित करता है; फिर वह मज़दूर हो या इंजीनियर, छात्र हो या प्राध्यापक, धनपति हो या ग़रीब, अधिकारी हो या जनसाधारण, शिक्षित हो या अशिक्षित और आज की भाषा में प्रतिष्ठित हो या अप्रतिष्ठित!

इस प्रकाश में मैंने अपने जीवन की राह पाई और इस जागरण में अपने जीवन का यथार्थ। चाहता हूँ दूसरे भी इन दीपों के प्रकाश में अपने जीवन की राह पाएँ, इन शंखों के जागरण में अपने जीवन का यथार्थ; इसीलिए इन्हें चाव के साथ साहित्य के मंदिर में रख रहा हूँ।

स्रोत :
  • पुस्तक : दीप जले, शंख बजे (पृष्ठ 7)
  • रचनाकार : कन्हैलाल मिश्र 'प्रभाकर'
  • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
  • संस्करण : 1951
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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