ध्रुव लग पहुंच्या धणी नै ध्याया
dhruw lag pahunchya dhani nai dhyaya
ध्रुव लग पहुंच्या धणी नै ध्याया, जिकै पाछा नई आया।
ब्रह्म में वै समाया, जिकै सहजै सुरत लगाया॥
बिण स्वासा सुमरण किया, सहजै जोगी सून्य में पाया।
दुतिया दुविधा भाव तजिया, तज जीव ब्रह्म होया॥
करता करम अकर्ता बंधन में नीं पड़ता नीं मरता।
निडर होय निज सरूप निरखता, अपनी धुन में ध्यान करता॥
नई माय नई बाप, अपनै आप विचरता।
नईं अजपा नई जाप, नई करणी करता॥
चंदा नीं सूरा सहज नूरा, निकट निकटा नई दूरा।
सहज बाजा अणहद तूरा, अपणै में आप पूरमपूरा॥
नई देवा नई सेवा, एकाएक अलख अभेवा।
बिण पायां कुण जांण्या, अलख अगोचर देवा॥
हंस रौ हाल हंसा जांणै, बुगला जांणत नांय।
कहे रांमदे सुणो भाई साधो, ब्रह्म महिमा बरणी न जाय॥
जो साधक ईश्वर की आराधना करते हुए अपनी साधना के चरमोत्कर्ष पर पहुँच गए, उनका पुनर्जन्म नहीं हुआ। जिन्होंने समाधि की सहजावस्था में ध्यान लगाया वे ब्रह्म में समा गए। प्राणायाम द्वारा समाधि चढ़ाकर जिसने परब्रह्म का स्मरण किया, उसने अपने गगनमंडल में सहज योगी को प्राप्त किया। संशय युक्त द्वैत भाव को जिसने त्याग दिया, वह स्वयं परब्रह्म हो गया। परब्रह्म को प्राप्त करने वाला सांसारिक कार्य करते हुए भी कर्ता के भाव से मुक्त होने के कारण कर्म के बंधन में नहीं पड़ता है। परब्रह्म न तो जन्म लेता है और न मरता है। इस रूप को प्राप्त साधक भय रहित होकर अपने शुद्ध स्वरूप को अपने आप में देखता है और इसी ध्यानावस्था में स्वयं अपने आप का ध्यान करता है। इस परब्रह्म के न माँ है और न बाप, यह तो स्वयंभू होकर संपूर्ण ब्रह्मांड में विचरण करता है। न तो यह जप का विषय है और न ही अजपा आदि संज्ञा में समाहित है अर्थात् यह समस्त विशेषणों और संज्ञाओं से परे है। यह किसी प्रकार का कर्तृत्व नहीं रखता है। बिना सूर्य और बिना चंद्रमा के यह स्वयं तेज का पुंज है, यह किसी भी प्राणी से दूर नहीं है अपितु निकट से भी निकटतम है। योग-साधना की सिद्धि प्राप्त करके जो अनाहत नाद सुनता है वह स्वयं परब्रह्म हो जाता है। न कोई देव है और न कोई पुजारी, न कोई आराध्य है और न आराधक। वह ईश्वर तो एक ही है। जिसने अपने इस परब्रह्म स्वरूप को प्राप्त कर लिया, उसी ने इसे जाना है। यह परब्रह्म इंद्रियातीत और अव्यक्त है। इसकी गति यही जानता है, जैसे कि हंस की स्थिति हंस ही जान सकता है, बगुला नहीं जान सकता। रामदेवजी कहते हैं कि जो परब्रह्म को प्राप्त हो जाता है केवल वही इसे जानता तो है किंतु वर्णन नहीं कर सकता; क्योंकि परब्रह्म अनुभूति का विषय है, अभिव्यक्ति का नहीं।
- पुस्तक : बाबै की वांणी (पृष्ठ 118)
- संपादक : सोनाराम बिश्नोई
- रचनाकार : बाबा रामदेव
- प्रकाशन : राजस्थानी ग्रंथागार
- संस्करण : 2015
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.