संत शिवनारायण के दोहे
दुनिया को मद कर्म है, संतन को मद प्रेम।
प्रेम पाय तौ पार है, छुटै कर्म अरु नेम॥
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जब मन बहकै उड़ि चलै, तब आनै ब्रह्म ग्यान॥
ग्यान खड़ग के देखते, डरपै मन के प्रान॥
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जहं लगि आये जगत महं, नाम चीन्ह नहिं कोय।
नाम चिन्हे तौ पार ह्वै, संत कहावत सोय॥
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चालिस भरि करि चालि धरि, तत्तु तौलु करु सेर।
ह्वै रहु पूरन एक मन, छाडु करम सब फैर॥
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संतमंत सबत परे, जोग भोग सब जीति।
अदग अनंद अभै अधर, पूरन पदारथ प्रीति॥
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एक-एक देख्यो सकल घट, जैसे चंद की छांह।
वैसे जानो काल जग, एक-एक सब मांह॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere