जसुराम के दोहे
राजनीति सबही पढ़े, सब ते राखे स्नेह।
जा के किमत नहिं जसू, लगे कुलच्छन एह॥
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चोरी चुगली पर तिया, कोऊ काम कुकाम।
एती बात न जानिये, सोऊ रैयत नाम॥
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जो दीजै परधान पद, तो कीजे इतवार।
जो इतवार न होय जसु, तो परधान निवार॥
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