ओनोरे द बाल्ज़ाक के उद्धरण

सिर्फ़ महाकाव्यों में ही लोग एक-दूसरे को मार डालने के पहले गालियों का आदान-प्रदान करते हैं। जंगली आदमी, और किसान, जो काफी कुछ जंगली जैसा ही होता है, तभी बोलते हैं जब उन्हें दुश्मन को चकमा देना होता है।
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जो कोई भी मैकियावेली को ध्यान से पढ़ता है, वह जानता है कि दूरदर्शिता इसी बात में है कि कभी किसी को धमकी न दी जाए, बिना कहे कर गुज़रा जाए; दुश्मन को पीछे हटने के लिए बाध्य तो किया जाए पर कभी, जैसाकि कहते हैं, साँप की दुम पर क़दम न रखा जाए; और अपने से नीची हैसियत के किसी भी व्यक्ति के अभिमान को चोट पहुँचाने से हमेशा बचा जाए। किसी व्यक्ति के हित को, चाहे वह उस समय कितना भी बड़ा क्यों न हो, पहुँची चोट कालांतर में क्षमा की या भुलाई जा सकती है; लेकिन अभिमान और दंभ को लगा घाव कभी भरता नहीं है, कभी भुलाया नहीं जाता। आत्मिक व्यक्तित्व भौतिक व्यक्तित्व से ज़्यादा संवेदनशील, या यूँ कहें कि ज़्यादा सजीव होता है। संक्षेप में, हम चाहे जो भी करें, हमारा आंतरिक व्यक्तित्व ही हमें शासित करता है।
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इतिहासकार को हरेक के साथ न्याय करने का अपना मिशन कभी भूलना नहीं चाहिए। निर्धन और संपत्तिवान सब उसकी क़लम के आगे बराबर हैं; उसके सामने किसान अपनी दरिद्रता की भव्यता के साथ उपस्थित होता है, और धनवान अपनी मूर्खता की क्षुद्रता के साथ।
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किसी आदमी से कहा जाए, “तुम ठग हो,” तो शायद वह इसे मज़ाक़ के रूप में लेगा, लेकिन उसे ठगी करते हुए पकड़ लिया जाए और उसकी पीठ पर छड़ी लगाकर उसे यह बताया जाए, उसे पुलिस अदालत की धमकी दी जाए और फिर उस धमकी पर अमल न किया जाए तो यह उसे परिस्थितियों की असमानता की ही याद दिलाएगा। अगर जनसाधारण किसी क़िस्म की नस्ली श्रेष्ठता को बर्दाश्त नहीं करेंगे, तो क्या यह मुमकिन है कि कोई ठग ईमानदार आदमी की नस्ल को सहन कर लेगा?
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संबंधित विषय : सहनशीलता
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आप ऐसे दो परिवारों में मेल करा सकते हैं जिन्होंने एक-दूसरे को लगभग ख़त्म ही कर डाला है, जैसाकि गृहयुद्ध के दौरान ब्रिटेनी और ला वेंदी में हुआ; लेकिन लांछन लगाने वाले और लांछित के बीच मेल कराना उतना ही कठिन है, जितना बलात्कारी और बलत्कृत के बीच मेल होना।
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इस पतनशील समय में हमारी दादियों के लहँगों का हश्र यही है कि उनसे कुर्सियों के कवर बना दिए जाते हैं।
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संबंधित विषय : पतनशील
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कायरता भी साहस के समान होती है, दोनों कई क़िस्म के होते हैं।
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संबंधित विषय : वीर
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…धनी आदमी के पास भावावेग होते हैं, और किसान के पास सिर्फ़ ज़रूरतें होती हैं। इसलिए किसान दोहरी निर्धनता का मारा है; और भले ही राजनीतिक रूप से उसकी आक्रामकताओं का निष्ठुरता के साथ दमन आवश्यक हो, मानवता और धर्म की नज़रों में वह पवित्र है।
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संबंधित विषय : राजनीति
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