गुरु अमरदास के दोहे
आपै नो आपु मिली रहिआ, हउमै दुविधा मारि।
नानक नामि रते दुतरु तरे, भउ जलु विषमु संसारु॥
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विसना कदे न चुकई, जलदी करे पुकार।
नानक बिनु नावै कुरूपि कुसोहणी, परहरि छोड़ी भतारि॥
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सबदि रती सोहागणी, सतिगुर कै भाइ पिआरि।
सदा रावे पिवु आपणा, सवै प्रेमि पिआरि॥
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आसा मनसा जगि मोहणी, जिनि मोहिआ संसारू।
सभु को जमके चीरे बिचि है, जेता सभु आकारु॥
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भै बिचि सभु आकारु है, निरभउ हरिजीउ सोइ।
सतिगुरि सेविऐ हरि मनि बसै, तिथै भउ कदे न होइ॥
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हसा वेषि तरंदिआ, वगांभि आया चाउ।
डूबि मुए वग वपुड़े, सिरु तलि उपरि पाउ॥
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मनु माणकु जिनि परखिआ, गुर सबदी बीचारि।
से जन बिरले जाणी अहि, कल जुग बिचि संसारि॥
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धन पिवु एहि न आखिअन्हि, व्हन्हि कइठे होइ।
एक जोति दुइ मूरती, धन पिवु कहीऐ सोई॥
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हरि गुण तोटि न आवई, कीमति कहण न जाई।
नानक गुरमुखि हरिगुण रवहि, गुण महि रहे समाई॥
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सहजि वणसपति फुलु फलु, भवरु बसै भैषंडि।
नानक तरवरु एकु है, एको फुलु भिरंगु॥
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इसु जगमहि पुरुष एकु है, होर सगली नारि सवाई।
सभि घट भोगवै अलिपतु रहै, अलषु न लखणा जाई॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere