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दूलनदास

1660 - 1778 | लखनऊ, उत्तर प्रदेश

रीतिकालीन संधि कवि। सतनामी संप्रदाय से संबद्ध। जगजीवनदास के शिष्य। भाषा में भोजपुरी का पुट।

रीतिकालीन संधि कवि। सतनामी संप्रदाय से संबद्ध। जगजीवनदास के शिष्य। भाषा में भोजपुरी का पुट।

दूलनदास के दोहे

दूलन यह मत गुप्त है, प्रगट न करो बखान।
ऐसे राखु छिपाय मन, जस बिधवा औधान1

राम नाम दुइ अच्छरै, रटै निरंतर कोय।

दूलन दीपक बरि उठै, मन प्रतीति जो होय॥

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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