दूलनदास के दोहे
दूलन यह मत गुप्त है, प्रगट न करो बखान।
ऐसे राखु छिपाय मन, जस बिधवा औधान1 ॥
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राम नाम दुइ अच्छरै, रटै निरंतर कोय।
दूलन दीपक बरि उठै, मन प्रतीति जो होय॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere