भिखारीदास के दोहे
तजि आसा तन, प्रान की, दीपै मिलत पतंग।
दरसाबत सब नरन कों, परम प्रेंम कौ ढंग॥
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जीबन-लाभ हमें, लखै स्याम-तिहारी काँति।
बिनाँ स्याम-घन-छन प्रभा, प्रभा लहै किहि भाँति॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere