जलराशियों का शोकगीत
jalrashiyon ka shokagit
तुम ग्रीष्म, अभी भी ग्रीष्म
बचपन के साम्राज्य का ग्रीष्म
भिनसार को बेधता
ईडन-प्रात
एक चमकदार शान
दुपहर के शून्य में
उड़ती चील के डैनों की तरह हवा में स्थिर,
ग्रीष्म सन्नाटों का
देवताओं की ईर्ष्यालु आँखों के नीचे
ग़ुस्से से उफनता
हमारी क़िस्मत पर आरूढ़ बोझ की तरह
हमारे वक़्त के डायल पर
गहरे, बहुत गहरे तक कटे हुए,
उद्दंड/घमंडी शहर
ठुनठुनाते निराश आसमानों के नीचे
जकड़े हुए, ज़हरीली रोशनियों से,
नदियाँ लग रहीं—
साधनहीन, स्रोतहीन
पारदर्शी छज्जों पर
न एक जाम शराब
न एक गिलास पानी
प्यास एक मासूमियत
बुझती जो पानी से,
आग! आग! शिकागो की तपती-जलती दीवारें
आग! आग! गोमोरा की झुलसती दीवारें
मास्को की आग—
जिनका होता नहीं कोई ईश्वर
ईश्वर होता उन्हीं के लिए—
वे कुचलते नहीं शब्द अपने, प्रार्थनाओं में,
अरे हाँ! बर्फ़, एस्किमो लोगों का दिव्य भोजन
तुम इन ब्रह्मचारी जंगलों की भौंहों पर
उठाते ठंडे हाथों से चक्रवात
क्या पश्चिम, क्या पूरब
आगे कई लोग और
सोये हैं रेत पर
दौड़कों ने उतार फेंकी हैं
नगीने-जड़ी गल-हँसलियाँ
मिस्र का दाढ़ीवाला देवता फेरो
हाथ में मोज़ेज़ की छड़ी
कह रहा—
हे भगवान! दया कर उन दस न्यायप्रिय लोगों पर
चीन पर दया कर
एक बच्चे की तरह कर रहा इतनी बड़ी प्रार्थना,
अपने आप पर दया कर
खिल उठते शब्द उस सुरीले कंठ में
जैसे मई के आगमन पर
सज उठा हो सारा बग़ीचा
मैं पुकार रहा तुम्हें
पवित्र तीसरे दिन की जलराशियो
पुकार रहा—
उस जलधारा को जो कर रही कल-कल
ऊँचे पहाड़ों से बहता साफ़-झक्क पानी
बर्फ़ का जल,
धुआँधार बारिश का जल
पहाड़ी झरनों का जल
सदाचार का जल
लेकिन तुम, दया के जल
मैं आ रहा मिलने तुमसे
अपने शाश्वत करुण राग की लय के साथ
महान नदी और उत्ताल-विराट समुद्र के पानी!
तुम सूरज, तुम चाँद
उलटी बहती धाराओं के पानी की एकरूपता के रखवाले
प्रायश्चित के ओ चमकीले पानी
मैं खाता तरस तुम पर
रात को अपने ही विलोम में घुल जाने दो
मृत्यु को ज़िंदगी की तरह
फिर जन्म लेने दो, सुबह के चमचमाते हीरे की तरह,
जैसे मन रहा हो सुन्नत का कोई जश्न
और रात सूर्य का अयालदार परदा उठाती
तब तमाम अपवित्र कहे जाने वाले जल
नाम धारण करके हो जाते पवित्र
कीचड़युक्त मटमैला पानी
डबरों का गंदा पानी
महानगरों का बदबूभरा पानी
जिनमें तिलमिलाते हज़ारों दु:ख, हज़ारों ख़ुशियाँ, हज़ारों आशाएँ
और हज़ारों गर्भपात की तरह गिरे स्वप्न,
बहो, पानी बहो,
समुद्र की तरफ़ दौड़कर बहो
अपना नमक छाँटो
दूर तक फैले प्रायश्चित-मग्न पानी
बहो, पानी बहो!
हे भगवान!
तुमने बनाया मुझे एक भाषा का मालिक
एक सौदागर का बेटा
अदना, सिलेटी रंग का, पैदाइश से
मेरी माँ तक
पुकारती मुझे शर्म कहकर
मेरे कारण हो गया दिन का सौंदर्य बदशकल - कहते लोग :
एक अन्यायपूर्ण फ़ैसला दिया तुमने
आ गई जिससे बोलने की ताक़त मुझमें
हे भगवान! सुनो मेरी आवाज़
बरसने दो बादल, बरसने दो,
यह क्या
पानी बरस रहा और
तुमने अपनी खुली तड़ित्-भुजाओं से
बहा दिए चश्मे क्षमा के!
न्यूयार्क पर वर्षा
नदियोगोवर और नदियालाखर पर वर्षा
मास्को और पोम्पिदू पर वर्षा
पेरिस और उसके आस-पास वर्षा
मेलबॉर्न, मेसिना और मोरज़िमा पर वर्षा
भारत पर वर्षा
चीन पर वर्षा,
डूब मरे चालीस लाख चीनी
बच गए एक सौ बीस लाख चीनी
बरसात सहृदय भी, दुष्ट भी
सहारा और मध्य-पश्चिम पर वर्षा
रेगिस्तानों पर वर्षा
गेहूँ और धान के खेतों पर वर्षा
घास और ऊन के
गुंबददार ढेरों पर वर्षा,
हो गया जीवन का पुनर्जन्म
रंग और रूप उसका
कोई भी हो
- पुस्तक : पुनर्वसु (पृष्ठ 61)
- संपादक : अशोक वाजपेयी
- रचनाकार : लियोपोल्ड सेडार सेंगोर
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
- संस्करण : 1989
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