Font by Mehr Nastaliq Web

सब कुछ

sab kuch

अनुवाद : सरिता शर्मा

अन्ना अख्मातोवा

अन्य

अन्य

और अधिकअन्ना अख्मातोवा

    सब कुछ लूटा गया, धोखा और सौदेबाज़ी थी

    काली मौत मंडरा रही है सिर पर।

    सब कुछ डकार गई है अतृप्त भूख

    फिर क्यों चमकती है एक प्रकाश किरण आगे?

    दिन के वक़्त, शहर के पास रहस्यमय जंगल,

    साँस से छोड़ता है चेरी, चेरी का इत्र।

    रात के समय जुलाई के गहरे और पारदर्शी आसमान पर,

    नए तारामंडल को पटक दिया जाता है।

    और कुछ चमत्कारपूर्ण प्रकट होगा

    अँधेरा और बर्बादी जैसा

    कुछ ऐसा, कोई नहीं जानता जिसे

    हालाँकि हमने इंतज़ार किया है उसका लड़कपन से।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विश्व की श्रेष्ठ कविताएँ (पृष्ठ 47)
    • रचनाकार : अन्ना अख्मातोवा
    • प्रकाशन : इंडिया टेलिंग
    • संस्करण : 2020

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY