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चश्मा

chashma

यह चश्मा मुझे विरासत में मिला है मेरी माँ से

मेरी माँ की आँखें मेरे जन्म के पहले से ही कमज़ोर हैं

मैं इससे प्रेम करता हूँ हालाँकि यह मुझे

माँ की नहीं मेरी एक कमज़ोरी की याद दिलाता है

हर वक़्त मेरे साथ रहता है यह चश्मा

कितनी सारी दुनिया देखी इसके सहारे मैंने

कितनी सारी चीज़ों की तस्वीरें इकट्ठी हैं इसमें

बहुत सारी नदियाँ बहती हैं इसमें

उड़ती हैं पत्तियाँ इसमें इकट्ठा हवाओं में

बहुत सारे शब्द इसकी स्मृति में हैं

तेज़ धूप में जब चलता हूँ मैं तो मेरे पसीने का

नमक सोखता है यह

हर बारिश में धुँधला हो जाता है और पिछली

बारिशों की स्मृतियाँ जमती हैं इसमें

जब मैं सोता हूँ तो मेरे सिरहाने रहता है और

सपने देखता है मेरे साथ

चुभती है जब बात कोई मेरी आँखों में

और पानी भर आता है

मैं इसको उतार कर पोंछता हूँ क़मीज़ से अपनी

स्रोत :
  • पुस्तक : दो बारिशों के बीच (पृष्ठ 42)
  • रचनाकार : राजेंद्र धोड़पकर
  • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
  • संस्करण : 1996

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