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सीमाएँ : आत्म-स्वीकृति

simayen ha aatm swikriti

भारतभूषण अग्रवाल

भारतभूषण अग्रवाल

सीमाएँ : आत्म-स्वीकृति

भारतभूषण अग्रवाल

और अधिकभारतभूषण अग्रवाल

    है श्रांत तन, है क्लांत मन, मैं आज हूँ निष्प्राण।

    आगे बिछी है राह

    जानता हूँ : यही है वह पथ कि जिस पर मिल सकेगी मुक्ति

    मेरी और सबकी मुक्ति;

    जानता हूँ : यही है वह पथ कि जिस तक पहुँचने की

    थी हृदय में चाह

    जी में था अतुल उत्साह।

    कड़ा करके जी, कमर कस, चल पड़ा था उस दिवस अम्लान

    वंचितों के स्वत्व-संगर में चढ़ाने एक निज का दान

    सोचता था : अब हुआ जीवन सफल, अब मिट गया अँधियार

    छूटे अब हमारे बंध

    तन के और मन के बंध

    सोचता था : क्षुद्र मन के स्वार्थ पर ही था विगत आधार

    मैं था मूढ, मैं था अंध।

    यों तोड़ नाते, छोड़ चिंता, एक निश्चय की सँभाले टेक

    मैं चला बनने अनेकों सैनिकों में एक।

    तब नहीं मैं जान पाया था—कठिन है राह यह कितनी,

    तब नहीं मैं जान पाया था—क्षणिक है स्फूर्ति यह इतनी!

    आज है. अचरज यही अत्यंत।

    उस महा आरंभ का हा! क्षुद्र ऐसा अंत!

    दूर है, मंज़िल अभी मेरी बड़ी ही दूर।

    किंतु मैं तो बीच में ही आज थक कर चूर

    गिर पड़ा हूँ राह पर।

    जा रहे हैं साथ के वर-वीर कसे-कमर

    किंतु मैं अपने निजी कुछ मोह में, कुछ मूर्ख आशा में

    इस अपूर्ण, अशक्त मन की स्वाभिलाषा में।

    अटक कर के रह गया हूँ स्वयं अपने जाल में

    वर्गवादी-हृदय के कटु व्यूह अति विकराल में

    आज पहली बार मुझको मिल सका है ज्ञान मन की परिधि का

    असहाय सीमाबद्ध अपनी शक्ति का।

    शक्ति : जो यों चाहती है फैल जाए विश्व-भर की सर्वनाशा

    अपहरण की नींव पर

    किंतु सीमा में बँधी, आकुल-घिरी, पथहारिणी बनकर

    फूट पाती है नहीं

    ढूँढ़ पाती है नहीं निज राह।

    मानता हूँ—सभी सीमाएँ सदा मन-जात

    किंतु मन क्या मुक्त है, उस पर नहीं क्या अपर बंधन?

    जन्म जिस परिवार में मैं ने लिया है,

    जिस तरह की परिस्थितियों से यहाँ तक सकी है

    ज़िंदगी की सड़क मेरी

    घूमती-फिरती अनेक मोड़ पर से काटती चक्कर

    उन

    परिस्थितियों का पिता है वर्ग और समाज पूँजी का,

    और, मेरे विकल मन की सभी सीमाएँ

    वहीं से निःसृत हुई हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तार सप्तक (पृष्ठ 88)
    • संपादक : अज्ञेय
    • रचनाकार : भारतभूषण अग्रवाल
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 2011

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