मेरी एक बहन हमारे घर में है
meri ek bahan hamare ghar mein hai
मेरी एक बहन हमारे घर में है,
और बाड़े के पार दूसरी है।
सिर्फ़ एक ही का नाम लिया जाता है,
लेकिन दोनों ही मेरी हैं।
एक उस राह से आई जिससे में...
और उसने पिछले वर्ष का मेरा चोंगा धारण किया—
दूसरी ने, चिड़िया ने जैसे अपना नीड़,
हमारे दिलों में अपना घर बनाया।
हमारी तरह वह नहीं गाती थी—
उसके स्वर अलग तरह के थे—
अपने लिए स्वयं संगीत रही
जेठ की भ्रमरी जैसे।
आज का दिन बचपन से बहुत दूर—
लेकिन पहाडियों पर चढ़ते और उतरते हुए
मैंने उसका हाथ और कसकर पकड़ रखा—
जिसने सारे मीलों की दूरियों कम कर दीं—
और अब तक वर्षों के बीच
उसकी गुनगुनाहट से
तितली को धोखा हो जाता,
और आज भी उसकी आँखों में
बनफ़्शा के फूल रहते हैं
बहुत से इन वसंतों में मुरझाए।
मैंने ओस गिरा दी—
लेकिन सुबह को ग्रहण किया—
मैंने फैली हुई रात की असंख्यता से
सिर्फ़ इस अकेले नखत का चयन किया—
सू का—हमेशा, हमेशा के लिए!
- पुस्तक : एमिली डिकिन्सन की कविताएँ : संचयन (पृष्ठ 19)
- रचनाकार : एमिली डिकिन्सन
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली
- संस्करण : 2011
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