एक
लेंगुएल नगर में मैं आया और एक आह में गिरफ़्तार हो गया
दीवारों को पीछे ठेल, स्वप्न-शिलाओं से निर्मित किया मैंने एक घर।
चिमनी के रास्ते उस में प्रविष्ट हुई मेरी आत्मा
और मेरी हाँक बुर्जियों पर जा चढ़ी।
मेरे गाल पर पड़ा तूफ़ानी मैदान का तमाचा
जिसे वराहदंती नागरिकों ने चौरस किया था।
पात-सूचकों के साथ मैं दक्षिण की ओर चल पड़ूँगा यायावरी की धुन में।
दो
लेंगुएल का फलता-फूलता नगर कोई बराबरी नहीं कर सकता
नहीं भर सकता मेरे सपने की ख़ाली छूटी जगहें;
छत पर विराजमान आसमान निकलता है अपनी दैनिक गश्त पर
बुर्जी पर ख़ून के धब्बे छोड़ता
गीत के बोलों के साथ यहाँ-वहाँ डोलता मैं
डाल देता हूँ डेरा अपनी भूख में—उन स्वप्न-शिलाओं के मध्य
द्वारों पर उत्तर दिशा, मारे गए वराहों के सींगों के,
अपने रणसिंगे फूँकती है
मैदान अदृश्य हो जाता है
और उस के साथ ही मेरे कोयल-शिशु का नीड़ भी
यह धूप-धूल और ख़ानाबदोशों का मौसम है
अरे, उस पथ को बचाओ जिसे सूर्य ने सीसे से ढँक दिया है,
बचाओ उस पथ को, जो धूसर नगर लेंगुएल को जाता है।
तीन
लेंगुएल नगर के घुटनों तक गहरे में
सुनाई देता है मुझे धूसर घंटों का नाद;
पथ की क्षत देह, अनिद्रा से सूजी नदी की आँखें,
अंधे रास्ते और ख़ानाबदोश
मेरे भीतर जलन पैदा करते हैं
समीप ही पत्थर की चौकियों पर
मर कर ढेर हो जाता है मेरा घोड़ा।
बुर्जी और मोखों पर विनष्ट,
उत्तर दिशा के जबड़े रहित कपाल में से, मैं
आग लगाऊँगा साँपों की बाँबी में,
मैं लौटूँगा दक्षिण-स्थित अपनी जन्मभूमि में
एक नए गीत और यायावरी के साथ।
सूर्य को निस्तेज कर के मैं सो गया हूँ;
कोई नहीं जानेगा कि मैं
निर्मम ख़ानाबदोशों के मौसम में पैदा हुआ था।
('लेंगुएल नगर की यात्रा' से एक अंश)
- पुस्तक : सूखी नदी पर ख़ाली नाव (पृष्ठ 443)
- संपादक : वंशी माहेश्वरी
- रचनाकार : बोगोमिल ग्युजेल
- प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
- संस्करण : 2020
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